दुनिया में ऐसा कोई साधन नहीं है जो भगवान को तुमसे मिला सके। भगवान कब मिल सकते हैं? जब वो चाहें, मैं मिलूँ। अगर किसी साधन के आधीन हुए तो वो छोटे हैं और साधन बड़ा है पर सारे साधन उससे हैं वो साधन से नहीं हैं। पर फिर एक सूत्र और आता है वो कब मिलेंगे? जब वो चाहेंगे, मैं मिलूँ।
अब प्रश्न उठा कि वो कब चाहेंगे?
गीता का सूत्र कहता है- वो तब चाहेंगें, जब वो देखेंगे कि तू भी चाहता है कि वो मिलें।
ये यथामाम् प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।।
आपकी उपासना, आपका भजन। ये हाथ की माला क्या है? ये खबर ही तो भेज रही है कि हम भी तुझे चाहते हैं। बस ये खबर पहुँच गयी तो वो भी तुम्हे चाह पड़ेगा। और कहीं न कहीं किसी न किसी मोड़ पर मुलाकात हो जाएगी। कहीं न कहीं टकरा जाएगा।
और मैं एक बात और कह सकता हूँ असम्भव है न टकराया हो। वो उपलब्ध था तुम्हारी दृष्टि नहीं पड़ी ये हो सकता हैह। ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि वो अनन्त है, अखण्ड है। ऐसा नहीं हो सकता कि वो तुमसे न मिला। वो तो तुम्हारे भीतर ही बैठा था। कमी बस इतनी सी थी तुम मिले थे, बस पहचाने नहीं थे।
मैं ये कह सकता हूँ जिसके ऊपर सद्गुरु की कृपा थी, वो राम को पहचान लिया। सत्य को पहचान लेना ही सद्गुरु की कृपा है। इसलिए कहा गया है सत्संग दृष्टि देता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
There is no such means in the world which can unite you with the Almighty. When can one attain God? Whenever He wills to meet you! If He would be attainable through some worldly means or efforts, then He would become insignificant and the means of attaining Him would become bigger but all the means are His though He remains beyond them. Then, another question arises that when can one attain Him? Whenever He wants to!
The very pertinent question will arise that when will He want?
The Sutra of the Gita says; He will want when He sees that you are also pining for Him!
Ye yatha maam prapaddyanttey taamstathaiva bhajammyaham||
Your worship, your ‘Bhajan’. What is this Mala you hold in your hand? It sends the message that you too want you! The moment this message reaches Him, He becomes eager to meet you. Somewhere or the other at some turn in life, you will meet Him. You shall have His ‘Darshan’ sooner than later!
I will add one more point here that it is impossible that you have not had a run in with Divinity so far. He was there, you might not have seen Him, that is possible. But, He was not there is just out of question because He is infinite and eternal! It cannot happen that He does not meet you. He is seated right there, within your heart! The problem is that you did meet Him but did not recognize Him.
I can say this with conviction that the one blessed with ‘Sadguru’s’ grace, will recognize Shree Rama. To realize or recognize the ultimate Truth is in itself the grace of your ‘Sadguru’. That is why it is said that the ‘Satsang’ gives you the vision to see the Divine!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavachary Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (२२-०६-२०२३)
जगति एतादृशं साधनं नास्ति यत् ईश्वरं भवद्भिः सह एकीकरणं कर्तुं शक्नोति। ईश्वरः कदा लभ्यते ? यदा इच्छति तदा अहं मिलितुं शक्नोमि। यदि कस्मिंश्चित् साधनाश्रितः, तर्हि सः लघुः साधनं च बृहत्, परन्तु सर्वे साधनानि तस्मात् एव, सः न साधनात्। परन्तु तदा अन्यः सूत्रः आगच्छति, ते कदा मिलन्ति? यदा इच्छति तदा अहं मिलितुं शक्नोमि।
इदानीं प्रश्नः उत्पन्नः यत् सः कदा इच्छेत् ?
गीतासूत्रम् उक्तम् – सः यदा पश्यति तदा एव इच्छति यत् त्वमपि तस्य मिलनं इच्छति।
इदम् यथामं प्रपद्यन्ते तन्स्तथैव भजम्यहम्।
तव पूजा, तव स्तोत्रम्। का एषा हस्तमाला ? सः एतां वार्ताम् प्रेषयति यत् वयम् अपि भवन्तं प्रेम्णामः। एषा वार्ता भवतः समीपं प्राप्यमाणमात्रेण भवन्तः तदपि इच्छिष्यन्ति। तथा कस्मिन्चित् समये अन्यस्मिन् वा समये मिलति। कुत्रचित् संघातं करिष्यति।
एकं च वक्तुं शक्नोमि, न संघातः इति असम्भवम्। उपलब्धम् आसीत्, सम्भवति यत् भवतः दृष्टिः न पतिता। न हि एतत् भवितुं शक्नोति यतः सः नित्यः, अखण्डः अस्ति। न सम्भवति यत् सः त्वां न मिलितवान्। सः भवतः अन्तः उपविष्टः आसीत्। केवलं दोषः आसीत् यत् भवता मिलितः, केवलं न परिचितः।
अहं वक्तुं शक्नोमि यत् यः सद्गुरुणा धन्यः आसीत्, सः रामं ज्ञातवान्। सत्यं ज्ञात्वा सद्गुरुस्य प्रसादः। अत एव सत्संगः दर्शनं ददाति इति उक्तम्।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।