पहले मन्दिर तीर्थ जाने की व्यवस्थाएँ भिन्न होती थीं। विचार होता था कि कौन जा सकता है? ऐसे ही लोग नहीं चले जाते थे। अपनी शुद्धता, पवित्रता,वस्त्र नियम इन सबका ध्यान रखकर जाते थे।
कोई सन्यासी हों, महात्मा हों, श्रेष्ठ हों उनको प्रमुखता दी जाती थी।
आजकल तो भीड़ बहुत होती हैं,व्यवस्थाएँ अलग-अलग हो गई सब। हर जगह भीड़ है। वृन्दावन भीड़ से ही परेशान है।
दरशन करना एक बहुत बड़ी कला है।
शहर का ही एक कोई गणमान्य व्यक्ति आपको बुलाए तो कितनी तैयारी करोगे, कपड़ा बढ़िया से बढ़िया निकालोगे, उपहार भी रखोगे और चाहे वो तुम्हारी अवहेलना ही कर दे, दो मिनट बैठे; हां ठीक हो भैया? हम ठीक हैं ठीक है भैया जाओ! हम बहुत बिजी हैं। तो भी कितनी अदब से फोटू खिंचवाओगे और फिर फ्रेम करके अपने ड्राइंग रूम में लगाओगे कि हम भी इतने बड़े व्यक्ति, इतने बड़े सेलिब्रिटी, इतने बड़े नेता अभिनेता से मिले थे।
अरे भैया! वो तो हजार पांच सौ एकड़ का मालिक होगा, पर मन्दिर में तो ब्रह्माण्ड का मालिक है। कम से कम इनके सामने तो उस मर्यादा से आना चाहिए।
ऐसे ही थोड़े न ठाकुर जी के सामने आया जा सकता है। यही तो भगवान विचार करते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।