श्री राधारमणो विजयते
अगर पहने हुए चश्मे को उतार दो तो बहुत सी सामान्य सी चीजें भी नहीं दिखेंगी। इसलिए एक काम करो कथा में आ करके भागवत जी की क्लीनिक से, गुरु रूपी डाक्टर के द्वारा एक दिन ऐसा चश्मा अपने मन के ऊपर, आंखों के ऊपर लगाकर के चले जाओ कि दुनिया में कृष्ण के अलावा तुम्हें कोई नहीं दिखे।
किसी का विरोध नहीं।
सम्बन्ध इसलिए भी हो जाए क्योंकि मैं भी उसका हूँ और ये भी उसका है। अगर इस बात में तुमने सम्बन्ध बनाया तो तुमने स्वार्थ की एक खिड़की खोल दी है कि मैं उसका हूँ और ये मेरा है। मैं तुम्हारे साथ इसलिए हूँ और तुम मेरे साथ इसलिए हो कि मैं भी उसका हूँ और प्यारे तु भी उसका है। ये जीवन की परिधि है।
और जिस क्षण उसके मन से वो हटना शुरू हो जाय, उस दिन तुम भी हटने शुरू हो जाओ।
जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिए ताहि कोटि वैरी सम,
कोई सन्देह ही नहीं। फिर मुलाहजे में मत पड़ जाना। गोस्वामी जी ने मना कर दिया है। किसी मुलाहजे में जाने की जरूरत नहीं है। और अगर मुलाहजा आ गया तो कमी उसमें नहीं, कमी तुममें ज्यादा है।
अभी असर हुआ नहीं है।
मुलायजे में मत पड़ जाना कि यार ये क्या सोचेगा, क्या नहीं सोचेगा? ये बात तो सोचने की तो है ही नहीं। अगर सोच में पड़ गए तो तुम गुरुओं की दृष्टि में सोचनीय हो जाओगे।
अभी विचारणीय है, पेंडिंग है, सोचनीय हो गए हो।
जो उससे निवृत्त हो जाता है वो अशोक हो जाता है, असोचनीय बन जाता है और जो सोच से निवृत्त होता है वो स्वार्थ से निवृत्त होता है और जब स्वार्थ से निवृत्त हो जाता है तो उसके लिए हर एक अर्थ फिर एक होता है-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
एक ही अर्थ होता है। और अगर ये अर्थ न हो तो पूरा का पूरा अध्यात्म ही तुम्हारा अनर्थ हो जाता है। व्यर्थ हो जाता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If you are wearing spectacles and once you take them off, you will not be able to see clearly. I have a suggestion, when you come to the Katha, then from Srimadbhagwatji’s clinic, by your Guru who is qualified doctor, get such a perfect pair of spects and wear it on the eyes of your mind so that you will see this entire world as Shree Krishna and nothing else!
Then you will not have any ill feeling towards anybody.
You will start seeing everyone as your own because then everything or everyone is connected to Shree Krishna only! If you just consider a direct relation with someone then you have opened the window of selfishness. But if you say that you are mine because we both belong to Shree Krishna, then it is entirely different! This is the boundary of life!
From the moment the other person starts moving away from the Lord, you too start drifting away!
‘Jaakey priya na Rama Vaidehi|
Tajjiye taahi koti bairi sama, jaddyapi param sanehi||’
There is no doubt at all! Then don’t get involved in formalities. Goswamiji has clearly said, No! There is no need of any formality or obligation! If there is any formality then you are at fault not the other person.
You have still a long way to go to get fully immeresed in the Krishna Consciousness!
Please don’t get into the trap of any formality, what will he think or feel? You don’t need to worry about all this! If you start thinking about it then in the eyes of the Gurus you will become a question mark!
You go into the pending tray where you will need a second thought!
The one who is able to get out of this rut, goes beyond any misery or pain and becomes thoughtless! Such an individual is not selfish and for an unselfish person everything becomes one –
‘Harey Krishna Harey Krishna Krishna Krishna Harey Harey| Harey Rama Harey Rama Rama Rama Harey Harey||’
Only this meaning is there or else, the entire spiritual practice becomes useless or meaningless!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||