श्री राधारमणो विजयते ||
तुम्हारे प्रश्न और शास्त्र के प्रश्न जब इन दोनों से तुम निवृत्त हो जाओगे तब भागवत सुनने के अधिकारी बनोगे। तब परीक्षित बनोगे। क्योंकि परीक्षित किसे कहते हैं? जो ना परीक्षक है, ना परीक्षार्थी है।
कभी आप परीक्षक बनते हो तो शास्त्र परीक्षार्थी बन जाता है और कभी शास्त्र परीक्षक बनता है तो आपको परीक्षार्थी बनना पड़ता है। परीक्षार्थी उसे कहते हैं जो पेपर देता है, परीक्षक उसे कहते हैं जो पेपर लेता है। इन लेने और देने, इन प्रश्न और उत्तर इन दोनों से जब आप निवृत हो जाओगे तब भागवत सुनने के लायक परीक्षित बन जाओगे।
परीक्षित जिसके पास इच्छा भी है जिसके पास प्रतीक्षा भी है। यह जीवन की परिधि है।
इच्छा भी रखता है और प्रतीक्षा भी रखता है। और समदर्शना होते हुए शुकदेव जी के शरणार्थी हो जाता है। आप जानो आपका काम जाने।।
दुनिया अपने आप निपट लेगी, व्यवहार अपने आप निपट लेगा। बस हमें एक ही चीज दो; बैठ करके भागवत के अनंत प्रगाढ़ रस को पिलाने की व्यवस्था बना दो।
और जब ऐसा परीक्षित बैठता है तो बड़े-बड़े वक्त भी उसके साथ बैठने में अपना सौभाग्य समझते हैं। बड़े-बड़े रचयिता उसके पास में बैठ जाते हैं।
इसलिए मैं सदैव एक बात बोलता हूँ- कृष्णकृपा गुरुकृपा कथा बोलने में कम होती है कथा सुनने में ज्यादा होती है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When you are done with your questions and the questions raised in scriptures only then you are qualified to hear Shreemadbhagwat! Only then will you become Parikshit! Who is Parikshit? The one who is neither the examiner nor the examinee.
When you become the examiner, the scriptures become the examinee and sometimes the scriptures become the examiner then you become the examinee. The examiner is the one who sets the question paper. When you are free from this give and take or from these questions and answers then you attain the right to hear Shreemadbhagwat like Parikshit.
Parikshit is one who has the inclination as well as patience. This is the outline of life.
He has the keen interest and has got immense patience. Being equanimous or Samdarshi, he surrenders at Shree Shukdevji’s Lotus Feet! Now you know and do as you please!
The world will settle on it’s own, your relations too will be taken care of! Just give me one thing, just make suitable arrangements to distribute this pulpy juice of Shreemadbhagwat.
When you become Parikshit in the true sense with this feeling then even great speakers or orators feel fortunate to sit and narrate in front of you. Many great composers or creators sit will like to sit with you.
That is why I always say one thing- Krishna-Kripa or Guru-Kripa is much less in narrating the Katha than in listening!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा त्वं स्वप्रश्नाभ्यां शास्त्रप्रश्नेभ्यः च मुक्तः भविष्यसि तदा भागवतं श्रोतुं अधिकारिणी भविष्यसि। तदा त्वं परिक्षितः भविष्यसि। यतः कः परिक्षितः इति उच्यते ? यः न परीक्षकः न अभ्यर्थी।
कदाचिद् परीक्षकत्वे शास्त्रं परीक्षार्थी भवति तथा च कदाचिद् शास्त्रं परीक्षकत्वे परीक्षार्थी भवितुमर्हति । परीक्षकः पत्रं ददाति, परीक्षकः कागदं गृह्णाति। यदा त्वं एतेभ्यः दानग्रहणेभ्यः, एतेभ्यः प्रश्नोत्तरेभ्यः मुक्तः भविष्यसि, तदा भागवतस्य श्रवणयोग्यः भविष्यसि।
परिक्षितः, यस्य कामः अस्ति, यस्य प्रतीक्षा अपि अस्ति। इति जीवनस्य परिधिः ।
सः इच्छति तथा प्रतीक्षते। समदर्शनं च प्राप्य शुक्देव जी शरणार्थी भवति। त्वं स्वकार्यं जानासि।
जगत् स्वस्य पालनं करिष्यति, व्यवहारः स्वस्य पालनं करिष्यति। केवलं एकं वस्तु अस्मान् ददातु; उपविश्य भागवतस्य अनन्तं तीव्रं च रसं पोषयितुं व्यवस्थां कुरुत।
यदा च एतादृशः परीक्षितः उपविशति तदा वयं तस्य सह कठिनतमसमये अपि उपविष्टुं अस्माकं सौभाग्यं मन्यामहे। तस्य समीपे बृहत् लेखकाः उपविशन्ति।
अत एव अहं सर्वदा एकमेव वदामि – कृष्णस्य प्रसादः, गुरुप्रसादः कथाकथने न्यूनः, कथाश्रवणे अधिकः।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्त: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥