श्री राधारमणो विजयते
चिड़िया जब अपने बच्चे के मुँह में दाना देती है तो उसको चबाकर गटकना पड़ता है पर गइया जब घास खाती है तो पहले भरती है उसके बाद जुगाली करके चबाती है फिर उसका दूध बनाती है और जब बछड़े को दूध देती है तो बछड़े को चबाना नहीं पड़ता, उसके गले से अपने आप नीचे उतर जाता है। वह दुग्ध गटकता है बस।
एक साधन है कि जीवन में जो सरल सूत्र सतगुरु ने कहे हैं आप उनका जीवन में अपने अभ्यास में लाइए। सत्यम वद्। धर्मम् चर।। दूसरी बात है- आचरण की कोई बात नहीं है, बस भजन करो। चबाने की जरूरत नहीं है। बस वह सारा सूत्र, जो दूध की तरह वो दे रहा है दूध की तरह पी जाओ।
सत्य बोल पा रहे हो अच्छी बात है, नहीं बोल पा रहे कोई बात नहीं। बैठो- हरे कृष्ण कहो, हरे कृष्ण कहो, श्री राधे श्याम कहो। कोई बात नहीं जहाँ तुम्हारी आस्था हो वह भजो।
अगर बछड़ा दूध गटकता जाएगा तो धीरे-धीरे उसके भीतर वह ऊर्जा आएगी कि वह एक दिन इतना बड़ा हो जाएगा कि खुद हो जाकर घास खा सकता है। बस उसी प्रकार से हरिनाम का दुग्ध पीता गया तो अपने आप ही चित्रवृति में अपने आप इतना विकास होता जाएगा के जीवन में स्वयं साधना पथ पर अग्रसर होकर हम स्वयं परमात्मा की परम अनुभूति को प्राप्त कर सकते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When the mother bird puts the food grains in her chick’s mouth, it has to break it up and then gulp it but when the cow eats grass, she regurgitates it first and fills her stomach, then turns it into milk which she gives it to the calf who drinks it effortlessly!
There is one way; the easy and simple sutras given by your Sadguru, practice them and inculcate them in your life. ‘Satyam Vada’|’Dharmam chara’|| The second thing – If you can practice it, so far so good but if not at least engage yourself in Bhajan. Don’t get into the trouble of chewing! The sutra which is given to you in the form of milk, just drink it effortlessly!
If you speak the truth, it is good, for any reason if you are unable to speak the truth, don’t fret over it. Just sit down quietly and repeat; ‘Hare Krishna! Hare Krishna! Shree Radhey Shyam!’ Whatever suits or appeals to you, just chant or repeat it, as much as you can!
If the calf drinks the milk, gradually it shall give it the energy and as it grows bigger, it is able to graze on its own! In the same way when the devotee goes on drinking the milk of Hari Naam, gradually the ‘Chitta-Vritti’ will grow and on its own the devotee shall progress on the spiritual path and attain God-Realisation!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा खगः स्वस्य बालकस्य मुखं धान्यं स्थापयति तदा तत् चर्वणं ग्रसितुं च भवति, परन्तु यदा गोः तृणं खादति तदा प्रथमं तत् पूरयति, ततः चर्वति, ततः क्षीरं करोति, वत्सस्य दुग्धं ददाति, वत्सस्य चर्वणं न भवति। , स्वयमेव कण्ठं अधः गच्छति। सः केवलं क्षीरं ग्रसति।
एकः उपायः अस्ति यत् सतगुरुणा दत्तानि सरलसूत्राणि स्वजीवने व्यवहारे स्थापयितव्यानि। सत्यं वद् । धर्मं चर । द्वितीयं वस्तु अस्ति – आचरणस्य विषयः नास्ति, केवलं भजनं कुरुत। चर्वणस्य आवश्यकता नास्ति। केवलं क्षीरवत् यत् सूत्रं ददाति तत् सर्वं पिबन्तु।
साधु यत् त्वं सत्यं वक्तुं समर्थः असि, यदि त्वं न शक्नोषि तर्हि कुशलम्। सिट- बोलो हरे कृष्ण, बोलो हरे कृष्ण, बोलो श्री राधे श्याम। भवतः श्रद्धा कुत्रापि भवतु, तस्याः पूजां कुरुत।
यदि वत्सः क्षीरं ग्रसति तर्हि क्रमेण ऊर्जां प्राप्स्यति यत् एकस्मिन् दिने सः स्वयमेव तृणं खादितुं पर्याप्तं विशालः भविष्यति यदि वयं हरिनामस्य दुग्धं तथैव पिबन्तः स्मः तर्हि अस्माकं चित्रवरी स्वतः एव एतावत् विकसितं भविष्यति यत् जीवने आध्यात्मिक-अभ्यासस्य मार्गे अग्रे गत्वा वयं स्वयमेव ईश्वरस्य परम-अनुभवं प्राप्तुं शक्नुमः।
।।वाणी शब्दावली गुंथन: गुरुदेव।।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥