श्री राधारमणो विजयते||
जैसे तुम केशी घाट पर जाओ तो सीढ़ी जमुना जी में भी है और जमुना जी के बाहर भी है। तुम सीढ़ी पर नीचे चलते जाओ तो सीढ़ी पर ही रहोगे पर जमुना जी कमर तक आ जाएंगी। इसी को तटस्था शक्ति कहते हैं विश्वनाथ चक्रवर्ती जी की भाषा में।
गुरु को तटस्था शक्ति कहते हैं। तटस्था शक्ति का मतलब जैसे- केशी घाट तट है। तट नदी में भी होता है नदी से बाहर भी होता है। तटस्था शक्ति मतलब जो इस लोक में भी है और परलोक में भी। एक ऐसी कॉमन चीज जो यहाँ भी है और वहाँ भी। जो यहाँ भी चल जाएगा, वहाँ भी चल जाएगा। जो यहाँ भी मिल जाएगा, वहाँ भी मिल जाएगा। ऐसी तटस्था शक्ति गुरु को कहते हैं।
तभी तो एक परंपरा के अंतर्गत। जैसे एक ट्रेन में इंजन ही नहीं हो तो उसका डिब्बा कितना भी अच्छा हो उसमें तुम आगे नहीं बढ़ सकते। इसलिए हम कहाँ गुरु आश्रय ढूंढेंगे! जिसकी परंपरा में मूल गुरु श्रीकृष्ण स्वयं हैं।
एक गुरु परंपरा का जो शुद्ध वर्ग है। आप गौड़ियाओं की प्रणाली को देखो तो सबसे पहले गुरु कौन हैं? साक्षात श्रीकृष्ण हैं। भगवान श्रीकृष्ण ब्रह्माजी को प्रथम उपदेश करते हैं। इसलिए
हम लोग कौन हैं? ब्रह्म मध्व गौड़ीय। कौन से ब्रह्मा जी हमारे गुरुजी हैं? वो ब्रह्माजी जो श्रीवृंदावन की लीला में ब्रह्ममोहन लीला करते हैं।
ब्रह्ममोहन लीला करके जब बृजवासियों का संग किया तब श्रीकृष्ण ने उनको गोपाल मंत्र प्रदान किया, ये लो मंत्र लेकर ब्रज में बैठो और इसका भजन करो।
तब वो मंत्र ब्रह्माजी ने नारदजी पर कृपा करी, नारदजी ने व्यासजी पर कृपा करी फिर धीरे-धीरे ऐसे प्रणाली श्रीमन महाप्रभुजी से श्रीगोपालभट्ट गोस्वामी जी महाराज की परंपरा आगे बढ़ी।
तो इंजन आगे श्रीकृष्ण रूप में लग रहा है और डिब्बा पीछे है। यही वैदिक शास्त्र के द्वारा गुरु धरने की प्रक्रिया है। चलता फिरता सब पूज्य हैं पर एक गुरु आधिकारिक पोस्ट है। कोई यूनिफॉर्म पहनकर पुलिस वाला आ जाए कि हम तुम्हें बचाएंगे तो वह अनऑफिशियल है जब तक उसके पास आधिकारिक पदवी नहीं है तब तक काम नहीं बनेगा।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
When you go to ‘Keshi’ Ghat then you will see stairs outside as well as inside Shree Jamunaji. If you go on walking down the steps then you shall be still on the steps but Shree Jamunaji will come above your waist! In the words of Shri Vishwanath Chakraborty this is called ‘Tattastha Shakti’.
Our Guru represents this ‘Tattastha Shakti ‘! The meaning of ‘Tattastha Shakti’ can be understood by this example of the Keshi Ghat. The banks of the river are inside as well as outside the river. The ‘Tattastha Shakti’ is in this loka as well as para-loka. Such a common thing which is in this world as well as beyond. Which is acceptable here as well as beyond. You shall get it here as well as beyond. Such a ‘Tattastha Shakti’ is our Guru!
That is why it follows down by tradition. Like if there is no engine then even if the compartment is very comfortable, the train won’t move! That’s why, where will we go looking for the refuge of the Guru or ‘Guru Ashraya’? Only if Shree Krishna himself is the original Guru of that lineage.
This is the sacred part of the ‘Guru-Parampara’! If you notice in the Gaudiya tradition, who is the first Guru? Lord Krishna himself! Lord Krishna gives his first instruction to Shree Brahmadev! That’s why;
Who are we? ‘Brahma Madhv Gaudiya!’ Which Brahma is our Guru? This Brahmaji in the Vrindavan Leela, performs the ‘Brahma-Mohan-Leela’!
While performing the ‘Brahma-Mohan-Leela’ when he is in the midst of of the Brijwasis then Shree Krishna initiated him with the Gopal Mantra, now take this Mantra and chant it by living in Braja!
When Lord Brahmaji out of his grace gave it to Shri Narada, who then gave it to Vyasdevji, coming down in this tradition, Shremann Mahaprabhuji gave it to Shri Gopal Bhatt Goswamiji Maharaj and in this way it has been going on till date!
Therefore, the engine of this train is Shree Krishna himself! According to the Vedic traditions this is the Guru tradition or lineage which goes down through generations. Walking talking every one is revered but the Guru’s post is a very celebrated and decorated position! If someone wears a police uniform and comes and says that I will protect you then, it is unofficial until and unless he is an officially authorized person!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
यथा, यदि भवान् केशीघाटं गच्छति तर्हि जमुना जी इत्यत्र अपि च जमुना जी इत्यस्य बहिः सोपानम् अस्ति । यदि भवन्तः सोपानं अधः गच्छन्ति तर्हि भवन्तः सोपानं एव तिष्ठन्ति परन्तु जमुना जी भवतः कटिपर्यन्तं आगमिष्यन्ति। एषा विश्वनाथचक्रवर्तीभाषायां तटस्थशक्तिः कथ्यते ।
गुरु तटस्थ शक्ति उच्यते। नाथ्रा शक्ति अर्थात् केशी घाट इव तटः। तटाः नदीयां तथा नदीतः बहिः अपि वर्तन्ते । न्हथ्र शक्तिः इह लोके तथा परलोके वर्तमाना इत्यर्थः । सामान्यं वस्तु यत् अत्रैव तत्रैव अस्ति। अत्र यत् कार्यं करोति तत् तत्र अपि कार्यं करिष्यति। यदत्र लभ्यते, तत्रापि लभ्यते। तादृशी तटस्थ शक्ति गुरु उच्यते।
तदा एव परम्परायाः अन्तः। यथा – रेलयानस्य इञ्जिनं नास्ति चेत् तस्य विभागः कियत् अपि उत्तमः भवतु तस्मिन् भवन्तः अग्रे गन्तुं न शक्नुवन्ति । अतो गुरोः शरणं कुतः प्राप्नुमः। यस्य परम्परायां आदि गुरुः श्रीकृष्णः एव अस्ति।
शुद्धः परम्परावर्गः यः गुरुः। यदि गौडिया व्यवस्थां पश्यसि तर्हि प्रथमः गुरुः कोऽस्ति? सः साक्षात् श्री कृष्णः अस्ति। भगवान् श्रीकृष्णः ब्रह्मजीं प्रति प्रथमं उपदेशं ददाति। अतः
वयं के स्मः ? ब्रह्म माध्व गौडिया। कौन ब्रह्म जी अस्माकं गुरुजी? श्री वृन्दावनस्य लीलायां ब्रह्ममोहनलीलां यः करोति सः ब्रह्मजी।
ब्रह्ममोहनलीलं कृत्वा ब्रजजनैः सह यदा गतः तदा श्रीकृष्णः तस्मै गोपालमन्त्रं दत्तवान्, एतत् मन्त्रं गृहीत्वा ब्रजे उपविश्य जपं कुर्वन्तु।
ततः सः मन्त्रः, ब्रह्मजी नारदजीं आशीर्वादं दत्तवान्, नारद्जी व्यासजीं आशीर्वादितवान्, ततः क्रमेण अस्य व्यवस्थायाः परम्परा श्रीमन महाप्रभुजीतः श्री गोपालभट्ट गोस्वामी जी महाराजपर्यन्तं प्रगतवती।
अतः अग्रे श्रीकृष्णरूपेण इञ्जिनं दृश्यते, पृष्ठभागे कोचः च भवति। इति वैदिकशास्त्रानुसारेण गुरुविवेचनप्रक्रिया। भ्रमणं कुर्वन्तः सर्वे पूज्याः सन्ति किन्तु एकस्यैव गुरुस्य आधिकारिकपदं वर्तते। यदि कश्चन पुलिसकर्मचारी वर्णाधारितः आगत्य वदति यत् वयं भवन्तं उद्धारयिष्यामः तर्हि सः अनधिकृतः अस्ति तथा च यावत् तस्य आधिकारिकं उपाधिः नास्ति तावत् कार्यं न भविष्यति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥