श्री राधारमणो विजयते
आध्यात्म की सबसे पहले सीढ़ी होती है श्रद्धा की। पहली चीज जो आपके भीतर घटती है वह है श्रद्धा। श्रद्धा का सर्वोत्तम सर्वप्रथम लक्षण है सम्मान। क्योंकि सम्मान से ही श्रद्धा की शुरुआत होती है। और श्रद्धा में सम्मान ही होना चाहिए। वहाँ अपमान की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है। वहाँ नहीं है। उसके आगे हो सकती है।
अगर केवल श्रद्धा है तो यू हैव टू बी रिस्पेक्टफुल। तुमको सम्माननीय बने रहना पड़ेगा। और सम्मानित करना पड़ेगा। पर जब रास्ते में ऊंचाई तक पहुंच जाओ, जब वह श्रद्धा का बीज प्यार तक पहुंच जाए तो सम्मान और अपमान इन दोनों से आप निवृत हो जाते हो।
फिर ना उसमें सम्मान रहता है फिर ना उसमें अपमान रहता है। और बल्कि उस तक पहुंचने के बाद सम्मान ज्यादा सूखा हो जाता है, अपमान ज्यादा मजा देता है। अपमान का मतलब इंसल्ट नहीं। वह अलग बात होगी।
हालांकि यह शब्द स्पेसिफिकली उसी फिलॉसफी के लिए प्रयुक्त होता है। पर
उस स्थिति तक पहुंचने के बाद अगर गोपी श्रीकृष्ण की स्तुति की जगह गलियां भी दे तो फर्क नहीं पड़ता है। कुछ खरी खोटी भी सुना दे तो फर्क नहीं पड़ता है। तो भी उन्हें भक्ति ही मिलती है। और बिना श्रद्धा की अगर अपमान भी हो तब भी सौदा सस्ता नहीं है। चिंता तब भी मत करो
क्योंकि यह बंसीवाला है ही ऐसा कमाल का। चिंता तब भी मत करो। बिना श्रद्धा के अगर अपमान भी है तो कम से कम शिशुपाल की तरह मुक्ति तो पा ही लोगे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The very first step of spirituality or Adhyatma is Shraddha. The first thing that takes place inside you is that Shraddha is born. The sign of Shraddha is respect. Because, respect is the beginning of Shraddha. Respect is a very important aspect of Shraddha. There is no scope of any disrespect in it. It has no place in it! It can be without, which is a different matter.
If there is Shraddha then you have to be respectful. You will need to be humble and respectful and showing respect will come naturally! When you reach a certain height on this path then the seed of love takes shape and you become unaffected by respect or disrespect.
Then there is no scope of respect or disrespect. On the contrary, when you reach that state then the respect becomes dry and hard and disrespect seems enjoyable. Here, disrespect doesn’t mean insult! That is something different!
Though this word is specifically used in this philosophy. But,
After reaching this state if the Gopi abuses Shree Krishna instead of praising Him or doing His Stuti, it makes no difference. Even if she uses some harsh words, it doesn’t matter. In return they are blessed with Bhakti! Without Shraddha if there is any disrespect, it is not a very hard bargain! Don’t worry in that state also.
Because, this ‘Bansiwala’ is such a wonderful and an amazing person. Don’t worry even then! Even if there is any insult without Shraddha, you will attain liberation like Shishupal!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
आध्यात्मिकतायाः प्रथमं सोपानं विश्वासः एव। भवतः अन्तः प्रथमं यत् भवति तत् विश्वासः एव। श्रद्धायाः प्रथमं चिह्नं सर्वोत्तमम् आदरः एव। यतः आदरः आदरात् आरभ्यते। भक्त्यां च आदरमात्रं भवेत्। तत्र अपमानस्य व्याप्तिः सर्वथा नास्ति । नास्ति। तस्य पुरतः भवतु।
यदि केवलं विश्वासः अस्ति तर्हि भवन्तः आदरपूर्णाः भवितुम् अर्हन्ति। भवता आदरपूर्वकं तिष्ठितव्यम्। सम्मानं च कर्तव्यं भविष्यति। परन्तु यदा त्वं मार्गे ऊर्ध्वतां प्राप्नोषि, यदा श्रद्धायाः बीजं प्रेम्णः प्राप्नोति, तदा त्वं आदर-अपमान-उभयोः मुक्ताः भवसि।
अथ तस्मिन् न आदरः, न अपमानः। अपि च तत् प्राप्य आदरः अधिकं शुष्कः भवति, अपमानः अधिकं विनोदं ददाति। अपमानस्य अर्थः अपमानः न भवति। तत् भिन्नं स्यात्।
तथापि तस्य दर्शनस्य कृते अयं शब्दः विशेषतया प्रयुक्तः । किन्तु
तत्पदं प्राप्य गोपी श्रीकृष्णस्य स्तुतिं न कृत्वा स्तुतिं करोति चेत् तत्र कोऽपि भेदः न भवति। केचन असत्यं वदन्ति चेदपि तस्य महत्त्वं नास्ति। अद्यापि ते भक्तिमात्रं प्राप्नुवन्ति। अनादरं च अपमानं भवति चेदपि सौदाः सस्तो न भवति। तथापि चिन्ता मा कुरुत
यतः एषः वेणुवादकः एतावत् आश्चर्यजनकः अस्ति। तदापि चिन्ता मा कुरुत। श्रद्धा विना अपमानः अस्ति चेदपि न्यूनातिन्यूनं शिशुपाल इव मोक्षं प्राप्स्यसि।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥