
अगर आपका परिवार बहुत श्रेष्ठ है तो निवेदन करूँ तो सबसे श्रेष्ठ एक भक्त परिवार है। ये बात बिलकुल बढिया है। ये भी भक्ति का एक प्रमाण है। परिवार का सामंजस्व एक बहुत बड़ी कला है।
ठाकुरजी परिक्षा करते हैं
कोई कह रहा है-
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम् देव! देव!
हमने दुनिया के सारे संबंध भगवान से जोड़े तो भगवान भी चेक करते हैं ये सारे संबंधों का निर्वाह कर कैसे रहा है? अब कोई पति पत्नी हो और पत्नी पति को ही न सम्हाल पाई तो ठाकुरजी कहेंगे जब ये संबंध का महत्व ही नहीं जानता तो मुझे कितना संभालेगा।
तुम कह रहे हो- त्वमेव माता च पिता त्वमेव तो ठाकुरजी देखेंगे त्वमेव माता च पिता त्वमेव कितना है? यहाँ सब बवाल चल रहे हैं और ठाकुरजी के सामने जाकर त्वमेव माता पिता त्वमेव? ठाकुरजी कहेंगे जब इससे माता पिता भाई बंधु संबंध नहीं सम्हल रहे तो मुझको कितना सम्भालेगा? ये आडम्बर नहीं चलता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
