हमारे ब्रज में ठाकुरजी ने पूर्ण रूप से जनम लिया है। जनमें हैं, प्रगटे नहीं हैं।
एक पाषाण में से मुर्ति प्रगट होती है पर ब्रज में तो शालिग्राम शिला से जनमें हैं। इसलिए हमारे यहाँ राधारमणजी का उत्सव जब होता है तो उसका भी जनम पूनो है, प्राकट्य पूनो नहीं है। बड़ो ने रखा है नाम तो समझ कर ही रखे होंगे।
जन्माष्टमी कहते ही अर्थ कृष्णाष्टमी हो जाता है। अलग से नाम नहीं रखा जाता। किसी का भी प्राकट्य है उसका दिन उसके नाम से है। रामनवमी है, नरसिंह चतुर्दशी है, वामन द्वादशी है पर लालजी का प्राकट्य जन्माष्टमी है और राधारमणजी का प्राकट्य जनम पूनो है।
शालिग्राम यथावत् भी सर्वस्व रूप हैं। इसलिए ब्रज की सुमधुर लीला अद्वितीय है। उसकी सार्वभौमिकता सर्वगुण शीलता अद्भुत है। ठाकुरजी यहाँ अपनी अत्यंत गूढ़ निभृतीय लीला सम्पन्न करने में अपनी ईश्वरता को भी छिपाने में संकोच नहीं करते।
॥परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
In our Braj, Shree Thakurji has taken birth! He is literally born here, not incarnated!
An idol is created out of a block of stone, but in Braj, He has even taken birth from a ‘Shaligram-Shila’! That is why, when we celebrate the Utsav of Shree ‘Radha Ramanji’ then we celebrate ‘Janam-Poono’ and not ‘Praakatya-Poono’. Our elders have given this name so I am sure, it must be with a valid reason.
The moment we say ‘Janmashthami’ it means ‘Krishnashthami’! There is no need to give it a different name. Any incarnation is known by the name of the incarnate! Like, ‘Rama Navami, Narsingh Chaturdashi, Vaman Dwadashi, but ‘Lalji’s’ birth is ‘Janmashthami’ and Shree ‘Radha Ramanji’s’ appearance day is ‘Janam-Poono’!
Shree Shaligram by itself is ‘Sarvaswaroopa’! That is why, the ‘Braj- Leela’ is unique! Its universal and comprises all the Guna, which is truly amazing! Shree Thakurji does not hesitate even a little bit to exhibit His deeply intrinsic, and mysterious ‘Nibhrateeya-Leela’ and His Divinity here!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
ठाकुरजी अस्माकं ब्रजे पूर्णजन्मं कृतवान्। जायन्ते न प्रकाश्यन्ते।
शिलातः मूर्तिः प्रादुर्भवति, परन्तु ब्रजे शिलातः शालिग्रामः जायते । अत एव यदा अस्माकं स्थाने राधारमञ्जिकोत्सवः भवति तदा तस्य जन्म अपि पुनो भवति, तस्य स्वरूपं पुनो न भवति। वृद्धैः नाम स्थापितं, अवगत्य अवश्यं स्थापितं स्यात्।
जन्माष्टमी उक्तमात्रं कृष्णाष्टमी भवति । न पृथक् नाम दत्तम्। यस्य व्यक्तिः अस्ति तस्य दिवसः तस्य नाम्ना भवति। राम नवमी, नरसिंह चतुर्दशी, वामन द्वादशी परन्तु लालजी रूप जन्माष्टमी राधारमञ्जी प्राकट्य जन्म पुनोऽस्ति।
शालिग्रामं सर्वस्य यथावत् रूपम्। अत एव ब्रजस्य सुरीला लीला अद्वितीया अस्ति। तस्य सार्वत्रिकता अद्भुतम् अस्ति। ठाकुरजी अत्र स्वस्य अत्यन्तं रहस्यमयं निभृतीयलीलं कुर्वन् अपि स्वस्य दिव्यतां गोपनं कर्तुं न संकोचयति।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।