श्री राधा रमणो विजयते
क्रोध बुद्धि को नष्ट करता है पर इतने क्रोधित होने के बाद भी जो विवेक को ना कोई खोए, ऐसा व्यक्ति परमात्मा का मित्र हो सकता है। क्रोध भी जरूरी है थोड़ा इससे अनुशासन जीवन में बना रहेगा।
गुस्सा होने में क्या तकलीफ है? नाराज हो जाओ। अनुशासन के लिए माँ भी क्रोधित होती हैं, पिता भी क्रोधित होते हैं, गुरु भी होते हैं, ईश्वर भी होता है। राम जी कई बार नाराज हुए पर
वह विवेक को नहीं खोते। जीवन में अगर विवेक जागृत है तो बड़ी से बड़ी परिस्थितियाँ हँसकर पार कर जाओगे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Anger destroys the intellect but one who doesn’t lose the balance or ‘Vivek’ in spite of the raging anger, he/she is an ideal person to establish friendship with the Almighty! Anger to an extent is acceptable in order to maintain proper discipline in life.
How does it matter if one gets angry? Ok, then go ahead and get angry! To discipline us, our mother also gets angry sometimes, our father too gets annoyed a few times, Guru and God enact being angry just to caution us, their annoyance is only for our ultimate good!
We see Lord Rama showing His annoyance but He never lost his ‘Vivek’. If there is ‘Vivek’ in life then be rest assured, you will pass off any situation in life just like that, smilingly!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
क्रोधः बुद्धिं नाशयति, परन्तु यः एतावत् क्रुद्धः अपि स्वस्य अन्तःकरणं न नष्टं करोति सः ईश्वरस्य मित्रं भवितुम् अर्हति । किञ्चित् क्रोधः अपि आवश्यकः, एतेन जीवने अनुशासनं निर्वाह्यते।
क्रुद्धस्य किं समस्या ? क्रुद्धः भवतु। अनुशासनार्थं माता अपि क्रुद्धः भवति, पिता अपि क्रुद्धः भवति, गुरुः अपि क्रुद्धः भवति, ईश्वरः अपि क्रुद्धः भवति। राम जी बहुवारं क्रुद्धा परन्तु…
सः स्वस्य अन्तःकरणं न हास्यति। यदि जीवने भवतः अन्तःकरणं जागरितं भवति तर्हि भवतः बृहत्तमानि अपि परिस्थितयः स्मितेन अतिक्रान्ताः भविष्यन्ति।
।।वाणी शब्दावली गुंथन: गुरुदेव।।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।