श्री राधारमणो विजयते
स्कंद पुराण के अनुसार गुरु सात प्रकार के होते हैं। यहाँ प्रकार का मतलब सात अलग-अलग लोग नहीं है जिसमें हम गुरुत्व का दर्शन करते हैं बल्कि एक ही गुरु के सात अलग-अलग स्वभाव है।
सबसे पहले है जिसे हम सूचक गुरु कहते हैं। सूचक गुरु मतलब जिससे हम शिक्षा लेते हैं। हमारे स्कूलों में जितने भी गुरु हैं जो हमें भाषा, शिक्षा, वाद्य यह जो सीखते हैं शिक्षक। शिक्षक को सूचक गुरु कहा जाता है जो हमारे अंदर सूचनाएँ भरदें, संकेत भरदें।
शिक्षक के प्रति भी हमारे हृदय में जीवन भर श्रद्धा होनी चाहिए। आज कथा से निकले एक एक शब्द उस शिक्षक के द्वारा सिखाये गए अक्षर ज्ञान के कारण ही हम समझ पा रहे हैं। हम सबके जीवन में सूचक गुरु अवश्य होना चाहिए।
हम उसमें भी अपने गुरुदेव का दर्शन करें।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
As per the ‘Skand-Purana’, there are seven types of Gurus. This does not mean seven different individuals having these characteristics but one person in whom all the seven traits are present!
The first is ‘Suchaka Guru’, the one who is the teacher. The teachers in schools and colleges who teach different subjects. The teacher is called the ‘Suchaka-Guru’ because he feeds us with information or indicates different subjects.
We should have respect and faith in our teachers! Today, we are able to follow what is being said in Katha only because of the primary knowledge we received through them. We all have the ‘Suchaka-Guru’ in our lives.
We should do the darshsan of our Sadguru even in him as he is his reflection!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
स्कन्दपुराणानुसारं गुरुजनाः सप्तविधाः सन्ति। अत्र प्रकाराः न सप्त भिन्नाः जनाः येषु वयं गुरुं पश्यामः अपितु एकस्यैव गुरुस्य सप्त भिन्नाः स्वभावाः।
प्रथमं यत् वयं सूचकगुरुः इति वदामः। सूचकः गुरु इत्यर्थः यस्मात् वयं शिक्षां गृह्णामः। अस्माकं विद्यालयेषु सर्वे शिक्षकाः सन्ति ये अस्मान् भाषा, शिक्षा, वाद्ययन्त्राणि इत्यादीनि पाठयन्ति, एकः शिक्षकः सूचकगुरुः इति कथ्यते यः अस्मान् सूचनाभिः संकेतैः च पूरयति।
अस्माकं आजीवनं गुरुषु अपि विश्वासः भवितव्यः। अद्य वयं कथायाः एकैकं शब्दं केवलं तस्य आचार्येण उपदिष्टस्य वर्णमालाज्ञानस्य कारणेन एव अवगन्तुं समर्थाः स्मः । अस्माकं सर्वेषां जीवने एकः मार्गदर्शकः भवितुमर्हति।
तत्र अपि अस्माकं गुरुदेवं पश्यामः।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥