इस संसार में तीन ही तरह रहा जा सकता है। मेहमान की तरह, जिसके घर में हैं उसके हिसाब की तरह और ये हमारा नहीं है ये मानकर। मेहमान की तरह रहना ज्ञान है, जिसके घर में हैं उसके हिसाब से रहना भक्ति है और ये हमारा नहीं है ये मानकर रहना ही वैराग्य है।
इस पूरी दुनिया को इन तीन तरीके से ही इंज्वाय किया जा सकता है। चाहे कितना भी अपना हो, इन तीन में से तरीका चेंज हुआ नहीं कि गड़बड़ शुरू हो जाएगी।
राहगीर गिर जाते हैं, काफिले निकल जाते हैं।।
किसी ने बड़ी खूब बात कही है-
सामान सौ बरस का और पल की खबर नहीं…
ठीक है जो हमारे पुरुषार्थ प्रारब्ध में था वो हमें प्राप्त हुआ पर कहीं न कहीं फाउंडेशन में यही सोचकर रखिए, जैसे कोई होटल में चेक इन करता है, दस दिन तक भी मेहमान की तरह मजे से रहता है। मेहमान की तरह रहता है, मालिक की तरह कभी नहीं रहता। एक प्वाइंट उसको राइट है ज्यादा उधम किया तो he can ask you, please get out sir!
इस दुनिया में भी जब कोई उधम करता है तो यमराज भी कहते हैं now you get out. टाइम आके चेक आउट तो करना ही पड़ता है नहीं तो गेट आउट करना पड़ेगा।
इसलिए जो संयास लेता है वो चेकआउट कर देता है और जो नहीं लेता उसको कलिकाल गेटआउट करता है।
वैराग्य यही है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
One can live in the world in three ways. Firstly, as a guest, second, according due respect to the ways of the host and lastly being fully aware that this house does not belong to me. To live as a guest is ‘Gyan’ or knowledge, to live in accordance to the ways of the host is ‘Bhakti’ and to live with a complete awareness of not being the owner is ‘Vairagya’.
You can enjoy the world in these three ways. In spite of your being very-very close to the owner, if there is even a slight change in your approach, trouble will start brewing!
‘Raahgeer girjaatey hain, kaafiley nikal jaatey hain’.
Someone has put it very beautifully –
‘Saamaan sau baras ka aur pal kee bhi khabar nahin ….
Whatever is the fruit of your labour or your fate, has accrued to you but somewhere as the foundation please keep this in mind that like when you check into a hotel and say, stay for a long time, still you are a guest or the occupant, not the owner! You will remain a guest all through and cannot claim ownership just because of your stay. Till a certain point, you enjoy the right to stay but the moment you cross the line and misbehave, the hotel owner can say, ‘please get out sir!’
Similarly, when someone misbehaves in the world, Yama comes and says, ‘Please get out immediately!’ The moment your reservation expires, you have to leave on your own or else you will be forced to leave!
That is why, the sannyasin, checks out as per the norms and the obstinate one is kicked out by the ‘Kalikaal’!
This is ‘Vairagya’!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (२५-०६-२०२३)
अस्मिन् जगति जीवनस्य त्रयः एव मार्गाः सन्ति। अतिथिवत् यस्य गृहे सः अस्ति तस्य विवरणानुसारं न अस्माकं इति मत्वा। अतिथिवत् जीवितुं ज्ञानम्, यस्य व्यक्तिस्य गृहे अस्ति तदनुसारं जीवितुं भक्तिः, अस्माकं नास्ति इति विश्वासः च अरुचिः।
एतैः त्रिभिः एव सर्वं जगत् भोक्तुं शक्यते । कियत् अपि भवतः अस्ति, यदि एतेषु त्रयेषु विधिः न परिवर्तितः तर्हि क्लेशः आरभ्यते।
यात्रिकाः पतन्ति, काफिलाः गच्छन्ति।
कश्चन बहु अवदत्
मालः शतवर्षीयः अस्ति, क्षणस्य वार्ता नास्ति…
ठीकम्, अस्माकं पुरुषार्थप्ररब्धे यत् आसीत् तत् प्राप्तम्, परन्तु आधारे कुत्रचित् एतत् चिन्तनं स्थापयन्तु, यथा कश्चन होटेले चेकं करोति, दशदिनानि अपि अतिथिवत् सुखेन तिष्ठति। अतिथिवत् जीवति, कदापि स्वामी इव न। एकः बिन्दुः तस्य कृते सम्यक् अस्ति, यदि सः अधिकं उधम मचति तर्हि सः भवन्तं पृच्छितुं शक्नोति, कृपया बहिः गच्छतु महोदय!
इह लोके अपि यदा कश्चन व्यापारं करोति तदा यमराजः अपि वदति इदानीं भवन्तः बहिः गच्छन्तु। भवन्तः समये एव बहिः गन्तुं अर्हन्ति, अन्यथा भवन्तः बहिः गन्तुं प्रवृत्ताः भविष्यन्ति।
अत एव यः संन्यासं चेकआउटं गृह्णाति यः न गृह्णाति सः श्वः बहिः गच्छति।
अरुचि इति एतत् ।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामीजी महाराज।