श्री राधारमणो विजयते ||
एक होती है चिड़िया के दर्जे की माँ। एक होती है गइया के दर्जे की माँ। पहले गुरु जीवन का सूत्र देता है, विवेक देता है। दूसरा गुरु क्या करता है दूध देता है। दूध मतलब भगवान की उपासना संबंधि उपदेश देता है। पहले चिड़िया जैसा गुरु जीवन के व्यावहारिक संबंधी उपदेश देता है और गइया वाला गुरु अध्यात्म संबंधी उपदेश से मार्गदर्शन करता है।
तीसरी अंतिम दर्जे की माँ होती है मछली। मछली के पास में हाथ नहीं है कि वह अपने बच्चों को कुछ खिला सके, ना ही उसके पास कोई ऐसा दूध का साधन है कि वो अपने बच्चों को दूध पिला सके। न वो बच्चे के मुंह में कुछ डाल सकती है, ना उसके पास हाथ है कि बच्चों को पुचकार सकती है।
गइया पुचकारती है, चिड़िया ठूसती है। मतलब कभी-कभी एक गुरु चिड़िया जैसा अनुशासन करता है जबरदस्ती भजन कराता है। भैया 4:00 बजे उठ जाना हमारे साथ बैठना। गइया जीभ से चाटती है हौसला बढ़ाती है। चलो कोई बात नहीं और कर। पर मछली के पास ना पुचकारने का साधन है ना ही ठूसने का।
मछली केवल अपने नेत्रों से अपने बच्चों का पालन करती है। किसी से बचाने के लिए भी केवल दृष्टि का ही उपयोग करती है।
तीसरे गुरु का स्वभाव मछली के तरह है। ना वो बुलाता है, ना देता है बस मछली की तरह नजर रखता है। केवल अपनी दृष्टि से उस पर कृपा करता है। केवल दृष्टि पड़ गई बस।
दृष्टि पड़ जाना मतलब यही है कि उनकी नजर पड़ जाए। नजर पड़ जाने का मतलब यह नहीं है कि वह जा रहे हैं, घूम रहे हैं, फिर रहे हैं और उनकी नजर पड़ गई है। असली दृष्टि कब पड़ती है? जब कभी बैठे-बैठे अचानक भजन करते-करते उन्हें आपका स्मरण हो आए।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
There is one mother whose nature is like a bird. Another is one who is like a cow. First of all, the Guru gives the disciple a Sutra and blesses him/her with Vivek. The second category of Guru provides milk! Here, by milk I mean he gives the understanding pertaining to the worship of the Lord. The first Guru, whom I have compared with the mother bird gives the right perspective about life in general, whereas the second who is like the cow, imparts the directions regarding the spiritual advancement.
There is a third category of mother who is like the fish. The fish is not equipped by any such limbs by which it can feed the baby fishes nor is she equipped to give milk to her progeny. Neither can she put anything in the baby’s mouth nor she has any hands to cradle or caress the baby fish!
The cow caresses or licks her calf where as the bird forces the foodgrain into the beaks of her chicks. This means that at times, the Guru is a bit strict like the bird when he compels the disciple to do Bhajan. My dear; please wake up at four early in the morning and sit with me. The cow licks her calf thereby showering it with affection and motivating it. Don’t worry if you have fallen down, get up and try again! But the fish is unable to do either of these things.
The fish nourishes her babies just by looking at them. Even to protect them, she only sees them and wards off all troubles!
The third Guru in my view is just like the fish. Neither does he call nor does he give anything, but just keeps a watch on his disciples. He showers his grace merely by looking at the disciple affectionately! Just a ‘Kripa-Kataksha’ or a benevolent look is enough!
To see affectionately means that the disciple is under his constant watch. This does not mean that he was going somewhere or passing by or just looked by the way! What is actually keeping a watch? When he is seated all by himself and while doing his Bhajan, he just thinks of the disciple!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
एकः पक्षित्वस्य माता। एकः गैयपदवीमाता । प्रथमं गुरुः जीवनस्य सूत्रं ददाति, प्रज्ञां ददाति। द्वितीयः गुरुः किं करोति ? दुग्धं ददाति । क्षीरस्य अर्थः ईश्वरस्य उपासनाविषये उपदेशं दातुं। प्रथमं पक्षिरूपः गुरुः जीवनस्य विषये व्यावहारिकं सल्लाहं ददाति तथा च गोसदृशः गुरुः आध्यात्मिकपरामर्शैः मार्गदर्शनं करोति।
तृतीया अन्तिमस्तरस्य माता मत्स्यः अस्ति। मत्स्यस्य न हस्ताः सन्तानपोषनार्थं न च क्षीरसाधनं सन्तानभोजार्थं । न च बालस्य मुखे किमपि स्थापयितुं शक्नोति, न च बालस्य लाडयितुं हस्ताः सन्ति ।
गावः लाडयति, पक्षी लाडयति। अर्थात् कदाचित् गुरुः पक्षिवत् अनुशासयित्वा भजनं कर्तुं बाध्यते। भ्राता, ४:०० वादने उत्थाय अस्माभिः सह उपविशतु। गैया जिह्वाया लेहयति, चोदयति च। कदापि न, केवलं कुरुत। परन्तु मत्स्यस्य न लाडयितुं न च स्तम्भयितुं साधनं भवति।
मत्स्याः केवलं नेत्रेण एव स्वबालकानाम् अनुसरणं कुर्वन्ति। कस्यचित् रक्षणार्थं सा केवलं दृष्टिः एव प्रयुङ्क्ते ।
तृतीयगुरोः स्वभावः मत्स्यस्य इव भवति। न आह्वयति न च ददाति, केवलं मत्स्यवत् मां दृष्टिपातं करोति। सः तं केवलं कटाक्षेण एव आशीर्वादं ददाति। केवलं दृश्यम् एव आसीत् ।
दृष्टिपातः तेषां दृष्टिः तेषां उपरि पतति इत्यर्थः । लक्षितत्वात् न गच्छति, परिभ्रमन्, लक्षितः च इति । वास्तविकदृष्टिः कदा आगच्छति ? यदा यदा त्वां सहसा स्मरति स्म उपविश्य भजनं जपन् |
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।