एक बात पक्की है, हम दुनिया में रहते किसी न किसी के हिसाब से ही हैं। कोई कभी अपने हिसाब से रह ही नहीं पाया। हम crowd को फॉलो करते हैं।
किसी हॉल में सब लोग धोती कुर्ता तिलक में हों, वहाँ कोई टैक्सिडो पहन कर आए तो असहज हो जाएगा। और अगर सबने टैक्सीडो पहनी हो और कोई धोती कुर्ता तिलक पहन कर आये तो असहज हो जाएगा। हम हमेशा एक नंबर को truth मानकर कहीं न कहीं उसको फॉलो करते हैं।
कहीं न कहीं हमारे जीवन के आधार में कोई न कोई है जिसका हम कहीं न कहीं किसी न किसी रूप मे अभिनय कर रहे हैं। चाहे वो हमारे कपड़े हों, चाहे वो हमारा भोजन हो कहीं न कहीं किसी न किसी को फॉलो कर रहे हैं। किसी ने आपको किस चीज से सिखाया है।
हम बहुत सारी जगह बहुत सारे लोगों को क्रिया करते देखकर सहजता से वो करने लग जाते हैं। और कहीं न कहीं सूक्ष्म रूप से हर क्रिया में किसी न किसी को follow कर रहे हैं। किसी न किसी का अभिनय करते हैं।
कोई माता शीशे में शृंगार कर रही हो तो किसी न किसी एक्टर को इमेजिन् कर ही लेती है।
रियलिटी चेक भी करना चाहिए कभी कभी। आप उससे बेटर लग रहे हो। कहीं न कहीं हम उस प्रभाव में होते है सदा।
श्री गुरुदेव कहते- जीवन में कभी कोई भी कार्य पूरा नहीं होता, जब वो प्रभाव में किया जाता है। कभी भी कोई कार्य पूरा नहीं होता जब वो किसी अभाव में किया जाता है। सदा वो कार्य स्वीकार किया जाता है जब वो पूर्ण भाव में किया जाता है। Emotions मे हर कार्य स्वीकार है।
हम इस संवेदनशीलता से विचार करते हुए अपने जीवनशैली को निश्चित करे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
One thing is certain that we live in this world according to someone else. Hardly anyone has been able to live on his/her own terms. We follow the crowd!
If in a hall, all the people gathered there are wearing a dhoti, kurta and a tilak and if a person walks in wearing a tuxedo, it will become awkward. Also, vice-versa that everyone is in a tuxedo and a person walks in wearing a dhoti, kurta and tilak, this too shall seem to be a bit queer. We always think the number one as the truth and try to follow it.
Somewhere, as the foundation of our life, at some time there is someone whom we are trying to copy or emulate in some way or the other. It might be the way of dressing or what we eat, we are following someone else. Somebody might have taught you and so you may be doing it!
We see so many people at different places in various milieus behaving differently and we pick up their mannerisms very easily. Observing it very minutely you will notice that each action is influenced by someone else. In other words, we are copying the other person!
When a woman is dressing up in front of a mirror, she is imagining the film actress whom she likes!
Once in a while, we should do a reality check. You are looking better than her. But invariably you are overly influenced!
Shree Gurudeva said, ‘Anything done under any sort of influence will never get accomplished. Nothing will get done when it is done in some sort of scarcity or in the absence of something essential. Anything done with total conviction and feeling is always accepted.’ When there is an emotional attachment to what you are doing then it is welcome and accepted!
Let us try to understand it sensitively and rationally, then frame our life accordingly!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (२६-०६-२०२३)
एकं वस्तु निश्चितम्, वयं कस्यचित् वा अन्यस्य वा अनुसारं जगति जीवामः। न कश्चित् कदापि स्वेच्छया जीवितुं शक्तवान् । वयं जनसमूहस्य अनुसरणं कुर्मः।
यदि कस्मिन्चित् सभागारे सर्वे धोती कुर्ता तिलाके सन्ति, यदि कश्चित् टक्सीडो धारयन् तत्र आगच्छति तर्हि असहजं भविष्यति। तथा यदि सर्वे टक्सीडो धारयन्ति, कोऽपि धोती कुर्ता तिलकं धारयन् आगच्छति तर्हि असहजं भविष्यति। वयं सर्वदा कस्यापि संख्यां सत्यं मन्यामहे, तस्याः कुत्रचित् अनुसरणं कुर्मः।
क्वचित्, अस्माकं जीवनस्य आधारे कश्चन वा अन्यः वा अस्ति, यस्य वयं केनचित् रूपेण वा अन्येन वा अभिनयं कुर्मः। अस्माकं वस्त्रं भवतु, अस्माकं भोजनं भवतु, कुत्रचित् ते कस्यचित् अन्यस्य वा अनुसरणं कुर्वन्ति। कश्चित् भवन्तं किं पाठितवान् ?
अनेकस्थानेषु बहवः जनान् कर्माणि कुर्वन्तः दृष्ट्वा वयं सहजतया तानि कर्तुं आरभामः। क्वचित् च प्रत्येकं कर्मणि सूक्ष्मतया कस्यचित् अन्यस्य वा अनुसरणं कुर्वन्ति। एकस्मिन् वा अन्यस्मिन् वा कार्यं कुर्वन्ति।
यदा माता दर्पणे स्वस्य मेकअपं कुर्वती अस्ति तदा सा एकं वा अन्यं वा नटं कल्पयति ।
यथार्थपरीक्षा अपि कदाचित् कर्तव्या। त्वं तस्मात् श्रेष्ठः दृश्यसे। कुत्रचित् वयं सर्वदा तस्य प्रभावे स्मः।
श्री गुरुदेव कहते- जीवने कदाचन कार्य सम्पन्न न होता, जब प्रभाव से किया जाता है। न कश्चित् कार्यः कस्मिंश्चित् अभावे क्रियमाणः कदापि सम्पन्नः भवति। तत् कार्यं पूर्णतया क्रियमाणे सदा स्वीक्रियते। प्रत्येकं कार्यं भावा: इत्यत्र स्वीकृतम् अस्ति।
एतां संवेदनशीलतां विचार्य वयं स्वजीवनशैलीं निर्धारयामः।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।