
There is a very thin line between duty and the illusion of attachment or love. Duty is fostered from two sides, one is what you do for your family and the other is what the family expects from you. You want to get your son married considering it to be your duty but the duty will get fulfilled only when the son also expects that you get him married. Both these things need to mature simultaneously or else there will be confusion.
If you say that it is your duty to find a suitable match for your son but the son says that while trying to fulfill your obligation, why are you hell bent on destroying his life? He wants to get married to the girl he wants!
Shree Thakurji also has a similar approach towards us. The Almighty shoulders our responsibility only to the extent we expect of Him.
‘Ye yattha maam prapaddyanttey, ttaamstathaiva bhajaamyaham||’
It is a very big thing!
You want to earn well and build a luxurious mansion for your son, you feel this to be a part of your duty whereas the son doesn’t expect you to take so much trouble. There are so many people who toil hard and build a big house but the son settles down abroad!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
कर्तव्य और मोह में बहुत छोटी सी लकीर है। कर्तव्य दो तरफ से प्रतिपालित होता है एक जो आप परिवार के प्रति करो और दूसरा जो परिवार भी चाहे कि आप करो। आप ये चाहते हो कि बेटा कि शादी हो ये मेरा कर्तव्य है पर कर्तव्य का पालन तभी होगा जब बेटा भी चाहे कि आप मेरा इस विवास में दखल करो। ये दोनों की मेच्योरिटी होना ज़रूरी है। नहीं तो झंझट हो जाएगा।
आप कहो नहीं मैं तो अपने कर्तव्य का पालन करूँगा, तेरी शादी ढूँढ कर कराऊँगा और वो कहे आप अपने कर्तव्य के चक्कर में मेरी जिन्दगी क्यों खराब कर रहे हो? मेरी जहाँ मरजी होगी वहाँ करूँगा।
ठाकुरजी भी हमारे साथ यही व्यवहार करते हैं। हम जितना चाहते हैं भगवान हमारे प्रति भी उतना ही कर्तव्य पालन करते हैं।
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्॥ बड़ी बात है।
कमा धमा के बेटा के लिए बढ़िया कोठी बनाके दे जाऊँ ये मेरा कर्तव्य है और वो चाह ही नहीं रहा कि आप इतना लम्बा झंझट करो। बहुत सारे लोग हैं बड़ी मेहनत करके बड़ा मकान बनाया और बेटा रहता है विदेश जाके।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।
कर्तव्यस्य आसक्तिस्य च मध्ये अत्यल्पा रेखा अस्ति। कर्तव्यं द्वयोः पक्षयोः प्रवर्तते, एकं यत् भवन्तः स्वपरिवारं प्रति कुर्वन्ति अपरं च यत् कुटुम्बं भवन्तं कर्तुम् इच्छति। त्वं तव पुत्रस्य विवाहं इच्छसि, मम कर्तव्यं, परन्तु मम कर्तव्यं तदा एव सिद्धं भविष्यति यदा पुत्रः अपि इच्छति यत् त्वं तस्य विवाहे हस्तक्षेपं करोषि। उभयोः कृते परिपक्वता महत्त्वपूर्णा अस्ति। अन्यथा क्लेशः भविष्यति।
त्वं वदसि न, अहं स्वकर्तव्यं निर्वहामि, अहं भवतः विवाहं प्राप्नुयाम् सः च वदति यत् त्वं किमर्थं स्वकर्तव्यस्य नामधेयेन मम जीवनं दूषयसि? अहं यत्र इच्छामि तत्रैव करिष्यामि।
ठाकुरजी अपि अस्माभिः सह तथैव वर्तते। ईश्वरः अस्माकं प्रति स्वकर्तव्यं यावत् इच्छामः तावत् निर्वहति।
ये यथा माँ प्रपद्यन्ते तंस्तथैव भजमिहम्। महती वस्तु अस्ति।
कामधामपुत्रस्य कृते सुगृहं निर्मातुं मम कर्तव्यं, सः न इच्छति यत् भवन्तः एतावत्कालं यावत् कष्टं कुर्वन्तु। बहवः जनाः परिश्रमं कृत्वा महत् गृहं निर्मितवन्तः तेषां पुत्रः विदेशे निवसति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।
