श्री राधारमणो विजयते||
ठाकुरजी की सेवा की एक मर्यादा होती है। कई जगह हमने देखा है मंदिरों में ले जाते हैं ठाकुरजी को तो कहते हैं- लो बिहारीजी का दर्शन करो। बिहारीजी में और तुम्हारे ठाकुर जी में कोई फर्क है क्या?
आपके गोपालजी और सामने बैठे बिहारी जी में कोई फर्क है क्या? यह कैसे कह सकते हो कि हमारे ठाकुर जी को बिहारी जी का दर्शन करा दो। इसका मतलब गड़बड़ हो गई बात।
ये पुत्र हैं पर बिहारी जी ही हैं। बहुत छोटी सी चीज है पर ठाकुर जी वही देखते हैं। बहुत बड़ी-बड़ी चीज नहीं देखते। ठाकुरजी का स्वभाव है छोटी वाली चीज देखनी है।
राधारमणजी में हमारे हमारे यहाँ अभी भी मर्यादा रखते हैं कोई दे तो कोई नहीं लेवे उसके बाद हम भी हमने कई जगह देखा है ले जाकर वही सामने नीचे धर देते हैं।
राधा रमन जी और तुम्हारी गोदी में जो है अगर तुम उन दोनों में फर्क मान रहे हो तो फिर जो हाथ में है उनकी सेवा नहीं करनी चाहिए। फिर तो वह मूर्ति हो गई। फिर तो केवल वह जैसे कोई और साधन होता है वैसा हो गया। साक्षात सामने बैठा है यह भावना रखिए। हमारे साथ है।
जब हम किसी सफर में जाते हैं तो किसी सतगुरु के पास में बैठकर समझिए कि जो हाथ में ठाकुर जी की सेवा है वह कैसे की जाती है? नीचे छोड़ना है तो कैसे छोड़ते है? संग ले जाना है तो कैसे ले जाना है? कहीं बिठाना है तो कैसे बिठाना है?
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
Shree Thakurji’s sewa has a certain dignity attached to it. We see at many places that they take you to the temple and say, ‘Here, now do Bihariji’s darshan’! Is there any difference between your Thakurji and Bihariji?
Between your Gopalji and Shree Bihariji in front of you, are they any different? Can you say that please make my Thakurji do the darshsan of Bihariji? Now this makes no sense!
He is ‘Laddu Gopal’ but in reality he is Bihariji only! As such it is a very small thing but Thakurji notices it! He does not only see big things! Thakurji’s nature is to notice even very small things very minutely.
At Shree Radha Ramanji, we still try and maintain this discipline or dignity that if sombody gives anything, we don’t accept it. We have also seen that if they take anything, they will place it in front of the deity!
If you feel any difference between the one who is in your lap and Shree Radha Ramanji then whatever you have in your hand, you should not use it for His sewa! If it be so then what you are carrying and in front of you, they are merely idols. It will then become like any ordinary thing! You should have this feeling that the Divine is seated right there in front of you. He is with us!
When you go on a trip and meet your Sadguru then seated at his Lotus Feet understand from him the way of offering sewa to Shree Thakurji who is with you? You don’t keep Shree Thakurji on the ground or just any where you like! Learn the basic tenets of sewa and follow them. How to keep Shreeji? If you want to take Him along then how should you do that? If you want to place Him then what should you keep in mind?
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
ठाकुरजीसेवायाः सीमा अस्ति। अनेकस्थानेषु वयं दृष्टवन्तः यत् ठाकुरजी मन्दिरेषु नीतः भवति ते च वदन्ति – आगच्छन्तु बिहारीजीयाः दर्शनं कुर्वन्तु। बिहारी जी भवतः ठाकुर जी च किमपि भेदः अस्ति वा ?
अग्रे उपविष्टस्य भवतः गोपालजी-बिहारीजी-योः मध्ये किमपि भेदः अस्ति वा ? कथं वदसि अस्माकं ठाकुर जी बिहारी जी पश्यतु। किमपि भ्रष्टं जातम् इत्यर्थः ।
सः पुत्रः अस्ति किन्तु सः बिहारी जी एव अस्ति। अतीव लघु वस्तु अस्ति किन्तु ठाकुर जी तथैव पश्यति। अतीव महत् वस्तूनि न पश्यन्तु। ठाकुरजी इत्यस्य स्वभावः लघु-लघु-वस्तूनाम् अवलोकनम् एव ।
राधारमञ्जीयां वयम् अद्यापि स्वस्थाने गौरवं निर्वाहयामः, केचन ददति केचन न गृह्णन्ति, तदनन्तरं वयम् अपि, वयं बहुषु स्थानेषु दृष्टवन्तः, जनान् गृहीत्वा पुरतः स्थापयन्ति।
यदि भवन्तः राधा रमण जी इत्यस्य अङ्के यत् किमपि अस्ति तस्य च भेदं विचारयन्ति तर्हि भवन्तः यत् किमपि हस्ते अस्ति तत् न सेवनीयाः। ततः सा मूर्तिः अभवत् । ततः अन्यस्य वाद्यस्य इव अभवत् । यथार्थः व्यक्तिः भवतः पुरतः एव उपविष्टः इति भावः भवतु । अस्माभिः सह अस्ति।
यदा वयं यात्रां गच्छामः तदा कस्यचित् सतगुरुस्य पार्श्वे उपविश्य ठाकुरजी इत्यस्य सेवा कथं भवति इति अवगच्छामः। यदि त्वया तत् त्यक्तव्यं तर्हि कथं त्यजसि ? यदि भवता सह नेतव्यं तर्हि कथं नेतव्यम् ? यदि कुत्रचित् उपविष्टव्यं तर्हि कथं उपविष्टव्यम् ?
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥