श्री राधारमणो विजयते
समर्पित भक्त का सबसे पहला नियम है कि वो व्यवस्था से मुक्त हो जाय। तुम समर्पित भक्त ही नहीं हो सकते, शिष्य ही नहीं हो सकते अगर अभी भी व्यवस्था में फॅंसे हो। जो समर्पित है उसकी व्यवस्था स्वामी करता है।
हनुमान जी को कहीं अलग से मन्दिर बनाने की जरूरत नहीं है क्योंकि रामजी बैठें हों तो उनका मन्दिर खुद बनेगा। रामजी मुंह फेर लेंगे अगर दरबार में हनुमान जी न बैठे हों। उन्हें अपनी स्वतंत्र व्यवस्था बनाने की जरूरत नहीं है। और एक और निवेदन करूँ जहाँ स्वतंत्र हनुमान जी का मन्दिर हो वहाँ पोशाक कैसी चढ़े न चढ़े मुझे पता नही पर रामजी के साथ बैठे हों वहाँ रामजी के मैचिंग की पोशाक चढ़ेगी। रामजी के हिसाब का मुकुट चढ़ेगा और भोग भी रामजी के हिसाब का ही लगेगा।
जो सेवक पूर्ण समर्पित हो गया वो व्यवस्था में नहीं फंसता, वो तो अवस्था में फंसता है। अपनी आंतरिक स्मृति को परिपक्व कर लेता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The very first indication of an unconditionally surrendered Bhakta is that he/she is completely free of all arrangements or stipulations. You cannot be a surrendered devotee or Bhakta if you are still entangled in stipulations. The one who is totally surrendered, his/her arrangements are taken care by the Master himself!
Hanumanji Maharaj doesn’t have to build a separate temple because wherever Shree Rama is there, Shree Hanuman is automatically present there. Shree Rama will turn His face away if Shree Hanuman is not there. He doesn’t have to make any separate arrangement for himself. I will make a humble submission here that I can’t say about separate Shree Hanuman temples but in Shree Ramji’s temple, where Shree Hanuman is there then his and Shree Ramji’s Poshak is the same! Their Mukuts are also similar.
The Sevak who is completely surrendered, he/she doesn’t get involved in bothering about any arrangements, they are just concerned about their own state! They firm up their internal Smriti or state!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||