अंधकार में हाथ पैर मारने वाले व्यक्ति के पास हो सकता है बहुत सी चीजें आ जाय, आप ये बताओ ऐसा ही जीवन कहीं आप तो नहीं जी रहे? सही बात तो ये है अंधकार में ही हाथपैर मार रहे है उसमें ही जो चीजें हाथ में लगी जा रही है उससे खुश हो रहे हैं।
एक आदमी ऐसे भवन में बंद हो गया जहाँ सोना ही सोना था और बड़ा अंधकार। अब हाथ पैर मारे तो बड़ा खुश हो, लगता है अँगूठी आ गई, लगता है ये आ गया, वो आ गया और जब थोड़ी देर बाद उजाला हुई तो पता चला ये सब तो केवल कल्पना थी। जिसे सोच रहा था कि सोने की अँगूठी है वो तो स्टील की अँगूठी निकली। हमारे साथ भी ऐसा ही होता है
हम अपनी कल्पना मे हाथ पैर मार रहे हैं दुनिया में कभी किसी जगह मारा, कभी किसी जगह मारा। हर सम्बन्ध में सुख की खोज कर रहे हैं। हम बड़े दुःखी, बड़े दुःखी कहकहकर बड़े प्रयास करते हैं खोजते हैं शायद इस वस्तु से सुख मिल जाय और थोड़ी देर जब वही हाथ में रहती है तो प्रसन्नता देती है और थोड़ी देर बाद वही झंझट देती है।
यही अंधकार है। अंधकार में हाथपैर मारने से कभी-कभी कुछ अच्छी चीज आ सकती है पर उस सुख का क्या फायदा? इस प्रकार के अंधकार को जो दूर करदे, हमारे जीवन से कुहक को दूर कर दे, अपनी दिव्य मधुर झांकी दिखा के।
सारी लाइट चले जाने के बाद भी ठाकुरजी के दरशन में कोई दुविधा नहीं होती। ये बिजली तो अभी पचास चालीस साल में लगी है उससे पहले तो दो दीवटों में दरशन होते थे। उन दीवट में ही श्रीठाकुरजी का दरशन हो जाता है। अर्थात् हमें अंधेरा भगाने के लिए किसी वस्तु के अधीन होना पड़ता है परन्तु सूर्य को अंधेरा भगाने के लिए किसी के आधीन नहीं होना पड़ता, वो स्वयं प्रकाशित है।
उसी प्रकार जिनकी प्राप्ति मात्र करने से जीवन में व्यवस्थित जितने अंधकार है वो नष्ट हो जाय ऐसे सत्यम् परम्, सत्यम् इति कृष्णम्, परम राधाम् राधारमणम् धीमहि।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
It is quite likely for the person who is struggling in the darkness might be able to gather a few things, now please tell me, whether we are also leading a similar life? The fact is that we all are going on struggling in the darkness and in the process whatever we are able to lay our hands on, we are delighted with it.
Someone, got locked in a mansion which was full of gold but there was no light inside. Now, in the darkness when he began to struggle, sometimes he got a ring, after sometime something else and he kept on getting and loosing but after a while when some light was switched on, he was disappointed because all what he thought he was getting was just his imagination. What he thought to be a golden ring was just a metal curtain ring. We also go through a similar fate!
In this world we are going on struggling, today here, tomorrow there, thereafter somewhere else! We seek happiness in each and every relationship. Going on lamenting, the struggle continues in the hope that maybe something what we are wanting might come through and we will become happy. After the long struggle, one may get what one wanted and become happy but after sometime, this very thing becomes a problem.
This is what is darkness. When one struggles in the darkness, it is quite possible that something valuable may come across but its happiness will last how long? The one who can decimate this darkness from our lives, can remove this warbling just by showing us merely a glimpse of His Divinely beautiful form!
Even after the lights go off, there is no difficulty in the Darshan of Shree ‘Thakurji’. The electricity has just come during the last forty/fifty years, prior to that, only two lamps used to flicker on either side somewhat aiding the Darshan. Just two tiny lamps proved to be enough then for Shree ‘Thakurji’s’ darshan. It means that in order to remove the darkness we have to take the help of a light source but the Sun doesn’t need anything to remove darkness because it is self-effulgent!
In the same way, just by their attainment all the darkness enveloping our life is removed, such; ‘Satyam Param, Satyam iti Krishnam, Param Radhaam Radharamannam dheemahi||
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (२७-०५-२०२३)
अन्धकारे ताडयन्तं व्यक्तिं बहु किमपि आगन्तुं शक्नोति, कथयतु, किं त्वं तथैव जीवनं यापयसि? सम्यगं तु तमो हस्तपादं ताडयन्ति, हस्ते स्पृष्टानि वस्तूनि सुखिनः भवन्ति।
एकः पुरुषः एकस्मिन् भवने निरुद्धः अभवत् यत्र केवलं सुवर्णं, महत् तमः च आसीत् । इदानीं यदि त्वं हस्तपादौ प्रहारं करोषि तर्हि त्वं बहु प्रसन्नः भविष्यसि, वलयम् आगतं इव दृश्यते, आगतं इव दृश्यते, आगतं च यदा किञ्चित् कालानन्तरं लघु आसीत् तदा एतत् सर्वं न्याय्यम् इति ज्ञातम् आसीत् कल्पना । यत् सुवर्णवलयम् इति मन्यते स्म तत् इस्पातवलयम् अभवत् । अस्मासु अपि तथैव भवति
वयं कल्पनायां हस्तपादं ताडयामः, कदाचित् जगति कस्मिंश्चित् स्थाने प्रहारं कुर्मः, कदाचित् अन्यस्मिन् स्थाने प्रहारं कुर्मः। ते प्रत्येकं सम्बन्धे सुखं अन्वेषयन्ति। वयं बहु दुःखिताः, अतीव दुःखिताः इति वदन्तः बहु परिश्रमं कुर्मः, वयं अन्वेषयामः यत् कदाचित् अस्मात् वस्तुतः सुखं प्राप्तुं शक्नुमः तथा च यदा किञ्चित्कालं हस्ते तिष्ठति तदा सुखं ददाति किञ्चित् कालानन्तरं च कष्टं ददाति।
इति अन्धकारः । कदाचित् अन्धकारे स्पर्शनेन किमपि हितं भवितुम् अर्हति, परन्तु तस्य सुखस्य किं प्रयोजनम् । यः एतादृशं तमः दूरीकरोति, अस्माकं जीवनात् दुष्टात्मानं दूरीकरोति, स्वस्य दिव्यं मधुरं चित्रं दर्शयन्।
ठाकुरजीस्य दर्शने सर्वाणि ज्योतिः निष्क्रान्तं कृत्वा अपि दुविधा नास्ति। एषा विद्युत् पञ्चाशत् चत्वारिंशत् वर्षेषु एव स्थापिता, ततः पूर्वं दीपद्वये दर्शनं भवति स्म । श्री ठाकुरजी तेषु दीपेषु एव दृश्यते। अर्थात् अन्धकारं विसर्जयितुं अस्माभिः किमपि अधीनता भवितुमर्हति, परन्तु सूर्यस्य अन्धकारं निष्कासयितुं कस्यचित् अधीनता न भवति, सः स्वयमेव प्रकाशितः अस्ति।
इसी प्रकार, जिस प्राप्ति से जीवन में व्यवस्थित अन्धकार सर्व नाश होते हैं, ऐसे सत्यम परम, सत्यम् इति कृष्णं, परम राधाम राधारमणं धीमहि।
.. परमराध्य: पूज्य श्रीमान माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।