दुनिया में हो तो खूब आनन्द से रहो। आपके पास विषय है, सेवेन स्टार और पता नहीं कितने बड़े स्टार की जगह आपने बुक की हो तो यू विल रेलिश द प्लेस। पर एक चीज मालूम है, कोई आपसे पूछे- सर! who are you? तो आप ये मत कहो, आई एम ऑन द ऑनर ऑफ द प्लेस, यू कैन ऑनली से; आई एम गेस्ट ऑफ द प्लेस।
अगर आप वहाँ के अतिथि होगे तो खूब मौज से स्वागत होगा। शायद इतना स्वागत मालिक का भी न हो। ऊपर से खुद मालिक खड़े होकर आपका स्वागत करे।
मैं निवेदन करूँ जब इस दुनिया में आप अपने आप को मेहमान मान लेते हो तब दुनिया का मालिक खुद आपकी सारी व्यवस्था करता है। नहीं तो हम अपनी व्यवस्था बना बनाकर थक जाते हैं एक काम ठीक से नहीं कर सकते।
कहीं अतिथि हो जाइये तो वो सब व्यवस्था बनाएगा। यही सारे जीवन का आधार है।
कहीं रहो मेहमान बनकर रहो, या कहीं रहो तो वहाँ के मालिक के अनुसार बनकर रहो। मेहमान थोड़े दिन ही रहा जा सकता है। पर अगर लम्बा रहना है व्यवस्था स्थायी करना है तो मालिक के हिसाब से रहा जाता है इस लिए
मीरा अभी भी कायम हैं, सूर अभी भी कायम हैं, कबीर अभी भी कायम हैं ये भक्ति है हम मालिक के अनुसार रहे। तब हनुमान जी भरी सभा में कह देते हैं-
दासोऽहम् कौशलेन्द्रस्य॥
वो स्वामी हैं हम सेवक हैं
जीवन के परिवेश का ये बहुत सूक्ष्म सिद्धांत है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
Since you have come into this world, just live it up, enjoy it to the fullest, experience bliss! You may have the means and you might have booked a seven star or God knows how many stars there are, you will try to enjoy it to the fullest. But, do you know something? If someone asks you, Sir! Who are you? Then you can’t say that I am the owner of this place, instead you will say that you are one of the guests.
If you are their honoured patron, you will be welcomed with great fanfare, maybe even the owner would not be accorded such a grand welcome. For that matter, the owner himself/herself will be present to welcome you.
I would like to submit that in the same way, if you consider to be a guest in the world, the creator himself takes care of all the arrangements for you. Otherwise, we can go on making our own arrangements and tire ourselves out still, nothing falls in place!
When you become the guest then your host does everything for you. This is the basic principle of life!
Wherever you may stay, stay as a guest and adjust yourself to suit the decorum of the host. A guest stays for a short period of time. If one wants to stay for a longer duration then one has to follow the wishes of the host. That is why;
Meera is still alive in our memory, ‘Soor’s’ presence is still felt by many of us, Kabir’s memory is still fresh, this is Bhakti when we live the way the Boss of all Bosses wants us to live! That is why, Shree Hanuman openly declares in the full court –
‘Daasoham Kaushalendrasya’||
He is the Master; we are His servants.
This is a very subtle and an important aspect of the art of living!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (२८-०६-२०२३)
यदि त्वं जगति असि तर्हि अतीव प्रसन्नः भव। भवतः विषयः अस्ति, सेवेन् स्टार तथा च न जानाति यत् भवता कियत् विशालं स्थानं बुकं कृतम्, भवतः स्थानस्य आनन्दः भविष्यति। परन्तु एकं वस्तु ज्ञायते, यदि कश्चित् भवन्तं पृच्छति – महोदय! त्वं कः असि? अतः भवन्तः एतत् न वदन्ति, अहं स्थानस्य सम्माने अस्मि, भवन्तः केवलं वक्तुं शक्नुवन्ति; अहं स्थानस्य अतिथिः अस्मि।
यदि भवान् तत्र अतिथिः अस्ति तर्हि भवतां स्वागतं सुप्रसन्नं भविष्यति । कदाचित् स्वामिनः अपि तावत् स्वागतं न भवति। उपरितः स्वामिना एव स्थित्वा स्वागतं करोति ।
अहं प्रार्थयामि यत् यदा त्वं लोके अतिथिं मन्यसे तदा जगतः स्वामी एव भवतः सर्वान् व्यवस्थां करोति। अन्यथा वयं व्यवस्थां कृत्वा श्रान्ताः भवेम, एकं कार्यं सम्यक् कर्तुं न शक्नुमः ।
यदि भवन्तः कुत्रचित् अतिथिः भवन्ति तर्हि सः सर्वाणि व्यवस्थानि करिष्यति। एतदेव सर्वजीवनस्य आधारः।
यत्र वससि, अतिथिरूपेण वसति, यत्र वा तत्र स्वामिनानुसारेण वसति । अतिथिः कतिपयान् दिनानि एव स्थातुं शक्नोति । परन्तु यदि भवन्तः दीर्घकालं यावत् स्थातुम् इच्छन्ति, यदि भवन्तः व्यवस्थां स्थायित्वं कर्तुम् इच्छन्ति तर्हि स्वामिनानुसारं एव तिष्ठति।
मीरा अद्यापि जीवति, सुरः अद्यापि जीवति, कबीरः अद्यापि जीवति, एषा भक्तिः, वयं भगवतानुसारेण जीवामः। अथ हनुमान् जी समागमे कथयति-
दासो’हं कौशलेन्द्रस्य ॥
सः एव स्वामी वयं भृत्याः
एषः जीवनपर्यावरणस्य अतीव सूक्ष्मः सिद्धान्तः अस्ति ।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।