जैसे कोई तृण नदी में बहता है और बहता ही रहता है। उसी प्रकार हमारा प्रारंभ हमारे परिवेश को प्रकट करता है, परिवेश हमारे संकल्प को, संकल्प हमारे कर्म को, कर्म पुनः प्रारब्ध को प्रतिपादित करता है फिर वह प्रारब्ध फिर परिस्थिति पैदा करता है इस प्रवाह में वह तृण की धारा बहती रहती है जीवन की धारा बहती रहती है। ये कृत्य चलता रहता है।
पर कभी-कभी बहते हुए किसी नदी की धारा में कोई ऐसी तरंग उठे, कोई ऐसी लहर उठे जिससे वह तृण प्रभावित होकर, उस प्रवाह से मुक्त होकर, किसी तट पर चढ़ जाए, किसी घाट पर चिपक जाए तो फिर वह उस प्रवाह से मुक्त हो जाता है।
उसी प्रकार प्रारब्ध, स्थिति, कर्म और कर्म फल के हमारे इस चिरकाल तक बह रहे जीवन के प्रवाह में कोई कृपा कटाक्ष भाजनम्।।
किसी महत् जन के, किसी महापुरुष के, किसी संतजन के, किसी उदार पुरुष के, किसी करुण पुरुष की, किसी वैष्णव की, किसी भगवत समर्पित जीव की। व्यक्ति ही नहीं बल्कि वस्तु भी। कोई व्यक्ति ही नहीं कोई फूल, कोई फल, कोई ठाकुर जी की कुलिया, कोई मठरी, कोई राधारमणजी की माला, केवल व्यक्ति ही नहीं वस्तु भी,
कोई वैष्णव वह भी भगवत समर्पित, भगवत संबंधी भी नहीं। गाय भगवत संबंधी है। गौशाला में रहती है, दूध देती है फिर भी वैष्णव सनातन धर्म के लिए वह पूज्या है क्योंकि वह भगवत संबंधी है। तुलसी भगवत संबंधी हैं। यमुना भगवत संबंधी हैं। एक वस्तु समर्पित होती है एक वस्तु संबंधी होती है।
व्यक्ति भगवत समर्पित होता है, गोस्वामी भगवत संबंधी होते हैं। दूर से देखकर भी उसपर राधारमणजी की के स्वरूप की अवस्थित हो जाएगी। सोने की माला प्रसादी करवानी पड़ेगी, यह तुलसी भगवत संबंधी है। किसी भी परिवेश में कृष्ण नाम जपने योग्य हैं।
तो चाहे भगवत संबंधी,चाहे भगवत समर्पित किसी व्यक्ति, वस्तु, परिवेश, किसी परिस्थिति, वस्तु भी नहीं, कोई स्थान। यह सब के सब उनके जीवन के इस प्रवाह में एक तरंग पैदा होती है
जैसे तरंग से बहाव से कोई तृण नदी के तट पर आ जाता है। उन्ही की कृपा से उत्पन्न हुई तरंग से यह जीवन भी भागवत कथा के तट पर आ जाती है।
तट भी अनंत प्रकार के हैं। कोई सामान्य तट है जहाँ उसे तृण के किनारे आने पर कोई उसके महत्व को नहीं समझता है और कई बार किसी श्रेष्ठ तट पर पड़ी हुई वह सामान्य वस्तु भी बड़ी पूज्य हो जाती है, वो स्मृति चिन्ह बन जाती है।
इस बार कृपा भी कोई सामान्य नहीं हुई है। वो तरंग भी किसी सामान्य कि नहीं है। सामान्य तरंगे तो किसी सामान्य घाट पर ले जाते हैं पर जब ज्वार भाटे उठाते हैं तो कहाँ तक बात पहुंचती है।
इस बार हमारे जीवन में किशोरी की कृपा की ऐसी तरंग उठी है, राधा की ऐसी कृपा बरसी है कि राधारमण का तट प्राप्त हो गया है। श्रीकिशोरीजी की ऐसी कृपा बरसी है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज।।
यथा तृणः नदीयां प्रवहति प्रवहति च।तथा एव अस्माकं आरम्भः अस्माकं परिवेशं प्रकाशयति, पर्यावरणं अस्माकं संकल्पं, संकल्पं अस्माकं कार्यं करोति, कर्म पुनः दैवं करोति, ततः तत् दैवं पुनः परिस्थितयः सृजति, अस्मिन् प्रवाहे धारा तृणस्य प्रवहति, जीवनस्य धारा प्रवहति। जीवति एतत् कृत्यं निरन्तरं वर्तते।
किन्तु कदाचित् प्रवहमाननद्याः धारायां तादृशी तरङ्गः उत्पद्यते, तादृशी तरङ्गः उत्पद्यते यत् तृणं तेन प्रवाहेन प्रभावितं भवति, तस्मात् प्रवाहात् मुक्तं भवति, कस्मिंश्चित् तटे आरोहति, कस्मिंश्चित् घाटं लसति, ततः तत् प्रवाहात् मुक्तं भवति . भवति ।
तथैव अस्माकं दैव-स्थिति-कर्म-कर्म-फलस्य नित्यप्रवाहस्य जीवनस्य प्रवाहे अनुग्रह-व्यङ्ग्यं नास्ति।
महत्त्वपूर्णपुरुषस्य, महापुरुषस्य, साधुस्य, उदारस्य, दयालुस्य, वैष्णवस्य, ईश्वरभक्तस्य। न केवलं व्यक्तिः अपितु विषयः अपि । न व्यक्तिः, न पुष्पं, न फलं, न ठाकुर जीस्य कुलिया, न मथरी, न राधारमञ्जी माला, न केवलं व्यक्तिः अपितु वस्तु अपि,
कोऽपि वैष्णवः यः अपि भागवतं समर्पितः, भागवतस्य सम्बन्धः अपि न आसीत्। गौः ईश्वरेण सह सम्बन्धी अस्ति। गोशालायां निवसति, दुग्धं ददाति, तथापि वैष्णवसनातनधर्मस्य कृते भागवतसम्बद्धत्वात् पूज्यते। तुलसी भागवत सम्बन्धी है। यमुना भागवत सम्बन्धी है। एकं वस्तु समर्पितं, एकं वस्तु सम्बद्धम्।
व्यक्तिः ईश्वरं समर्पितः भवति, गोस्वामी ईश्वरसम्बद्धः भवति। दूरतः पश्यन् अपि राधारमञ्जीरूपं तस्मिन् स्थितं भविष्यति। सुवर्णमाला अर्पितव्या भविष्यति, एषा तुलसी भागवतस्य सम्बन्धी अस्ति। कृष्णस्य नाम कस्मिन् अपि परिवेशे जपयोग्यम् अस्ति।
अतः ईश्वरसम्बद्धं वा, ईश्वरं प्रति समर्पितं वा, कस्यापि व्यक्तिस्य, वस्तुनः, परिवेशस्य, कस्यापि परिस्थितेः, न वस्तु अपि, कस्यापि स्थानस्य। एतत् सर्वं तेषां जीवनस्य अस्मिन् प्रवाहे तरङ्गं जनयति।
यथा तरङ्गस्य प्रवाहात् तृणं नदीतीरे आगच्छति। तस्य प्रसादेन उत्पन्नतरङ्गेन भागवतकथस्य तटे अपि एतत् जीवनम् आगच्छति।
तटाः अपि अनन्तप्रकाराः सन्ति । तत्र एकः साधारणः समुद्रतटः अस्ति यत्र तृणतटस्य विषये कोऽपि तस्य महत्त्वं न अवगच्छति, कदाचित् उन्नतसमुद्रतटे शयितं सा साधारणं वस्तु अपि अतीव पूज्यं भवति, स्मारिका भवति।
अस्मिन् समये अनुग्रहः अपि सामान्यः न अभवत्। सा तरङ्गः अपि सामान्यः नास्ति । सामान्यतरङ्गाः भवन्तं सामान्यघाटं प्रति नयन्ति, परन्तु यदा ज्वाराः उत्तिष्ठन्ति तदा प्रकरणं कियत् दूरं गच्छति।
अस्मिन् समये अस्माकं जीवने किशोरीकृपाया: एतादृशी तरङ्ग: उत्पन्ना, राधाया: प्रसाद: एवं प्रवृष्टा यत् राधारमणस्य तीर: प्राप्ता। श्री किशोरीजी के आशीर्वाद एवं वर्षा हुआ।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Say, like a blade of grass which is floating in the river, goes on and on with the flow! In the same way, our beginning indicates our surroundings, the surroundings indicate our determination, the determination indicates our Karma and the Karma goes round the full circle and puts forth our ‘Prarabdha’ or the beginning and it goes on to create circumstances so that the flow of our life goes on just like that blade of grass. This act goes on continuously!
But at times while flowing certain waves are formed in the flow of the river or all of a sudden, a wave takes it along and lodges it on the bank or it gets stuck to the ghat on the bank, after which it is freed from the continuous flow!
In the same way, the beginning, situations, Karma and the fruits of the Karmas by chance in this flow of life, some time, ‘Kripa kataaksha bhaajanam||’
Some great soul or a great personality or a saint or someone who is very benevolent or a very kind person or a Vaishnava or some ‘Bhagwad’ devoted person. Not only a person, it could even be any auspicious thing! Not a person per se, say a flower or a fruit or Shree Thakurji’s ‘Kulliya’ or a ‘Mathari’ or Shree Radha Ramanji’s Mala, it doesn’t need to be a person, anything for that matter;
Any Vaishnava but he/she must be ‘Bhagwad’ devotee or surrendered, not just related to Shree ‘Bhagwad’ in any way! A cow is ‘Bhagwad’ related. She stays in the ‘Gaushala’ and gives milk, yet for the Vaishnava Sanatana Dharma she is Poojya because she is Bhagwad related! ‘Tulsi’ is Bhagwad related! Shree Yamuna is Bhagwad related. There is one thing which is offered and another is connected.
An individual can be ‘Bhagwad’ surrendered, The Goswami in Bhagwad related! Seeing him from a distance, you will be able to imagine the Swaroopa of Shree Radha ‘Ramanji.’ If you want, you can offer a golden necklace but the Tulsi is Bhagwad related. You can do the Japa or Shree Krishna Naam in any situation, anywhere!
So, whether it is Bhagwad related or any individual who is Bhagwad surrendered or any thing that is offered, your surroundings or the situation, say not even anything, it can even be any place! All these create a wave in the flow of our life!
Like, under the influence of the wave or even a mild tide, the blade of grass comes ashore! In the same way, by the waves of grace of the Divine this life also comes on the bank of the Bhagwad Katha!
The banks of the river are of different types. Some can be just an ordinary muddy bank where even if the blade of grass comes and sticks, its of no consequence. At times, if it touches the sacred bathing ghat then even an ordinary thing lying there becomes Poojya and a memorable divine gift!
This time, the grace has not been any ordinary grace. That tide was not ordinary. When there is just a slight turbulence, it will just push it aside but during the high tide, it can take it anywhere, who knows?
This time, in our life we have been blessed by such a tidal wave out of sheer grace of Shree Kishori, Shree Radha showered us with such benevolence that we got the ghat of Shree Radha Raman! This is only and only the benevolent grace or Shree ‘Kishoriju’!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||