||श्री राधारमणो विजयते||
तीन प्रकार की मइया से गुरु हमारी रक्षा करता है। अगर गुरु मइया हैं श्रीकिशोरी जु हमारी अधिष्ठात्री हैं स्त्री रूपा हैं तो स्त्री की सर्वोत्तम स्त्रित्व ममत्व में जागृत होती है। और तीन दर्जे की माँ एक अनुशासन से चिड़िया मुँह में ठूस देती है, एक गइया की तरह है जो जीव से थोड़ा पुचकार लेती है, तीसरी है जो रहती तो दूर है पर अपनी नजर से ही नजर में सारी बात बना देती है।
यह तीन दर्जे की माँ गुरु रूप में अवस्थित है।
जिस दिन आप चाहे कुछ हो चाहे ना हो, बस सद्गुरु की नजर में हो तो बहुत है। हजारों लोग हैं पर क्या हम सद्गुरु की नजर में है? और नजर में रहने के लिए भजन करना पड़ता है।
ना यहाँ रहना, ना वहाँ रहना, जहाँ रहना संतों की नजर में रहना। इतने से भजन सहज-सहज प्रभावित होता चलता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Guru protects the disciple by assuming the role of three types of mothers! This goes on to prove that Guru is in a way our mother and Shree ‘Kishoriju’ is our Supreme Goddess, the Divine Mother! Therefore, her motherly affection is the very root of motherhood! As we have already seen, the bird mother stuffs the food into the mouth of her chicks, the second as the mother cow, licks her calf affectionately and third the mother fish, does everything just by seeing or thinking about her little ones!
These three types of mothers combine together as Guru’s motherly affection towards the disciple.
Whether anything else happens or not, it is immaterial but as long as you are under the surveillance or the watch of your Guru, it is enough! There are thousands of devotees but can we say that each and everyone of them are mentally connected with their Master? In order to enter this inner circle, one has to do Bhajan!
Neither staying here nor there, wherever you maybe, always try to be under the benevolent grace of your Sadguru! If this happens then Bhajan happens habitually and effortlessly on its own!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
गुरुः अस्मान् त्रिविधमैया रक्षति। यदि गुरु मैया श्री किशोरी अस्माकं अध्यक्षदेवता स्त्रीरूपा च तर्हि मातृत्वे स्त्रियाः श्रेष्ठा स्त्रीत्वं जागर्यते। तृतीयवर्गस्य च माता अनुशासनेन पक्षिणं मुखं स्तम्भयति, सा गौ इव प्राणीतः किञ्चित् लाडं गृह्णाति, तृतीया या दूरस्थः किन्तु सर्वं नेत्रेषु दृश्यमानं करोति।
एषा त्रिस्तरीया माता गुरुरूपेण संस्थिता अस्ति।
यस्मिन् दिने भवतः यत् किमपि भवति वा न वा, केवलं सद्गुरुस्य नेत्रयोः भवितुं पर्याप्तम्। सहस्राणि जनाः सन्ति किन्तु वयं सद्गुरुस्य दृष्टौ किं स्मः? दृष्टौ च स्थातुं भजनं कर्तव्यम्।
न अत्र वसितुं न तत्र वसितुं यत्र त्वां साधवः पश्यन्ति तत्र वसितुं। अस्य कारणात् भजनस्य प्रभावः सहजतया भवति ।
।।परमाराध्य : पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।