श्री राधारमणो विजयते||
बाहर की तैयारी सुंदर है उसमें भी उत्साह को प्रस्तुत किया जा सकता है। बस वहाँ भाव की सावधानी चाहिए। मैं सुंदर लगूँ तो तुम गिर जाओगे मैं राम को सुंदर लगूँ तो उसकी आँखों में चढ़ जाओगे। इन दोनों में बहुत आध्यात्मिक भेद है।
सजता वैष्णव भी है। मस्तक पर श्रीगुरु चरणों से निसृत रज लगी हो, आँखों में श्यामसुन्दर के दर्शन का अंजन लगा हो, अंग पर श्रीवृन्दावन की रज रूपी नीवी पहनी हो, चरणों में कीर्तनों के नृत्य के नूपुर बँधे हों, हाथों में संकीर्तन की ताली के कंगन पहने हो, ओष्ठ पर श्रीकृष्ण नाम रसमाधुरी की लालिमा लगी हो
तब तुम ऐसे सज जाते हो पुरुषों का तो नहीं पता पर पुरुषोत्तम को पसंद आ जाते हो। यही आध्यात्मिक श्रृंगार की भूमिका है।
आँखों का श्रृंगार है जब तुमको पुरुष न दिखे परमात्मा की अनुभूति हो। कानों का श्रृंगार है तुम दयालु हो जाओ जब तुम्हें आर्द्र नाद सुनाई दे। तुम जीव हो जब तुम्हें कोई नाद सुनाई दे पर तुम सिद्ध हो अगर तुम्हें ब्रह्मनाद सुनाई दे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
The external arrangements are very good but you can even make it very exciting and joyful. You just need to be very careful about your Bhava or emotions. If your objective is that you should look good, this will put you down but if your objective is that Shree Rama finds you to be beautiful then you will go up in His eyes! There is a lot of spiritual difference between the two.
Even the Vaishnav dresses up smartly. He adorns his forehead with ‘Shree Guru Charan Rujja’, the eyes are lined with kohl of the Darshan of Shree Shyam Sundar, he is wearing the garment of ‘Braj-Rujja’, the feet are adorned with the ankle bells or ‘Nupur’ of Kirtana, the hands are adorned with the armlets of clapping in the Sankirtana, the lips are pink with the ‘Rasa-Madhuri’ of Shree Krishna Naam!
When you dress up like this, I can’t say about men but surely Shree Purushottam is bound to love it! This is the foundation of spiritual make-up.
The beauty of the eyes is when instead of a man you see the Divine! The adornment of the ears is when you become kind hearted and you can hear the cry for help or service, ‘Aardra-Naad’. When you hear the ‘Naad’, you are a jeeva but if you can hear the ‘Brahma-Naad’, then you become a Siddha!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
बहिः सज्जताः सुन्दराः सन्ति, तस्मिन् अपि उत्साहः प्रस्तुतुं शक्यते। तत्र केवलं सावधानतायाः आवश्यकता वर्तते। यदि अहं सुन्दरं पश्यामि तर्हि त्वं पतिष्यसि, यदि रामः सुन्दरः दृश्यते तर्हि त्वं तस्य नेत्रयोः उत्तिष्ठसि। एतयोः मध्ये बहु आध्यात्मिकः भेदः अस्ति ।
सजातोऽपि वैष्णवः । शिरसि श्रीगुरुपादाद् निर्गतं क्षौमं भवेत्, नेत्रेषु श्यामसुन्दरस्य दर्शनस्य मसिः भवेत्, शरीरे श्रीवृन्दावनस्य क्षौमरूपेण निवी धारयिष्यसि , पादयोः कीर्तननृत्यर्थं नूपुरं बद्धं भवेत्, हस्तेषु संकीर्तनस्य ताडनकङ्कणं धारयेत्। श्रीकृष्णस्य रसमाधुरी इति नाम्नः रक्तता अधरे लेपयेत्।
तदा त्वं एवं वेषं धारयसि यत् त्वं पुरुषाणां विषये न जानासि किन्तु पुरुषोत्तमं रोचसे। एषा एव आध्यात्मिकालंकारस्य भूमिका अस्ति।
नेत्रयोः मेकअपः तदा भवति यदा भवन्तः पुरुषं न पश्यन्ति तदा भवन्तः ईश्वरं अनुभवन्ति। कर्णानां अलङ्कारः । गुञ्जनं श्रुत्वा दयालुः भवतु। कञ्चित् शब्दं श्रुत्वा जीवः असि किन्तु ब्राह्मणादं शृणोषि सिद्धः |
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज..