श्री राधारमणो विजयते
जो तुम्हारा निष्पक्ष रहने वाला, स्वाध्याय और विविध प्रकार के जीवन की घटनाओं से सामर्थ्य को इकट्ठा कर देने वाला जो पहला विवेक है वही तुम्हारा पहला गुरु है।
महात्मा तुम्हारे पास कितनी देर रहेगा? वो विवेक तुम्हारा पहला गुरु है। पर विवेक कैसा हो? जो निष्पक्ष हो। बिना किसी साइड का हो और जब ऐसा विवेक होगा तो तुम चावल अलग कर लोगे, कंकड़ अलग कर लोगे।
उसी विवेक को वसुदेव कहते हैं और उसी वसुदेव के ऊपर वासुदेव बैठते हैं।
जिसके पास वो विवेक है। क्या चाहिए क्या नहीं चाहिए? तुम पानी छान कर पीना चाहते हो, तुम चाय छान कर पीना चाहते हो, न जाने कौन-कौन से सिस्टम लगाए हुए हैं फिल्टर के पानी साफ होना चाहिए, मिनरल होना चाहिए साल्ट्स लिमिटेड होने चाहिए, दूध बहुत प्योर छना हुआ होना चाहिए।
जब इन सब वस्तुओं में तुम्हारी फिल्टरेशन की इतनी कामना है तो तुम अपने आँख के आगे एक फिल्टर क्यों नहीं लगा लेते हो? कान के आगे एक विवेक की छलनी क्यों नहीं लगा लेते हो कि देखने से पहले छान लो कि कौन मेरा है, कौन दूसरा है; सुनने से पहले छान लो कि किसने गाली दी है और किसने
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
वो छलनी क्यों नहीं लगा लेते हो अपनी जीभ पे? क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है? वो छलनी कौन सी है? वो विवेक की छलनी है और उस विवेक की छलनी को खरीदने के लिए ही कथा दरबार में बैठना पड़ेगा।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
What remains neutral or unbiased, that which gathers your spiritual pursuits and your capabilities of handling the day to day issues of life, this Vivek or understanding is your first Guru.
How long will the Mahatma stay with you? But that Vivek is your initial Guru! How should this Vivek be? It has to be neutral! It should be unbiased, only then will you be able to separate the grains of rice and tiny stones.
This Vivek is called Vasudev and Shree ‘Vaasudeva’ sits on top of one who possesses such a discrimination. What you need and what you don’t? You want to strain your tea and then have it, you want to have filtered water, God only knows what systems or gadgets you use for the filtration, there should be adequate minerals, the salt should be limited, similarly the milk should be pure and unadulterated!
If you are so particular about the purity of things then why don’t you put a filter on your eyes? Why don’t you put a filter or strainer on your ears so that before seeing you can segregate who is yours, who isn’t, before hearing you can filter out as to who has abused and who has uttered, ‘Harey Krishna Harey Krishna, Krishna Krishna Harey Harey | Harey Rama Harey Rama, Rama Rama Harey Harey ||’
Why don’t you put a filter on your tongue to assess what to say and what not to say! What is this filter? It is called Vivek and in order to get it, you will to be seated in the Katha Darbar!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva 8Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यः भवतः प्रथमः अन्तःकरणः, यः निष्पक्षः, यः स्वाध्यायात्, विविधैः जीवनघटनाभ्यः च बलं सङ्गृह्णाति, सः भवतः प्रथमः गुरुः अस्ति।
कियत्कालं यावत् महात्मा भवता सह तिष्ठति ? सः अन्तःकरणः भवतः प्रथमः आचार्यः अस्ति। परन्तु अन्तःकरणं कीदृशं भवेत् ? यत् न्याय्यम् अस्ति। पक्षहीनः भवतु यदा भवतः तादृशः विवेकः भवति तदा भवतः तण्डुलान् शिलाखण्डेभ्यः पृथक् करिष्यसि।
स विवेकः वासुदेव इत्युच्यते तस्य वासुदेवस्य उपरि वासुदेवः उपविशति।
कस्य तद्विवेकम् अस्ति। किं आवश्यकं किं च नावश्यकता ? भवन्तः छानितं जलं पिबितुं इच्छन्ति, छानयित्वा चायं पिबितुं इच्छन्ति, न जानन्ति यत् के प्रणाल्याः स्थापनाः सन्ति, छानितं जलं स्वच्छं भवेत्, तत् खनिजं भवेत्, लवणं सीमितं भवेत्, दुग्धं अतीव शुद्धं छानितं च भवेत्।
यदा एतेषु सर्वेषु विषयेषु भवतः एतावत् छाननस्य इच्छा वर्तते तदा भवतः नेत्रयोः पुरतः छाननं किमर्थं न स्थापयति ? किमर्थं भवन्तः कर्णयोः पुरतः अन्तःकरणस्य छानकं न स्थापयन्ति येन दर्शनात् पूर्वं को मम, कः अन्यस्य इति छानयन्तु; श्रवणात् पूर्वं ज्ञातव्यं यत् केन दुरुपयोगः कृतः, केन च दुरुपयोगः कृतः।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
किमर्थं त्वं तत् छानकं जिह्वायां न स्थापयसि ? किं वक्तव्यं किं न वक्तव्यम् ? सा कः चलनी ? अन्तःकरणस्य चलनी अस्ति, तत् अन्तःकरणस्य चलनीं क्रेतुं कथादरबारस्य उपरि उपविष्टः भविष्यति।
परमाराध्य: पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज .