श्री राधारमणो विजयते
समुद्र के किनारे जब राम लिखो तो समुद्र उछलकरके आता है और लहरों से उस नाम को मिटाकरके ले जाता है फिर दूर खड़े हो फिर नाम लिखो समुद्र फिर आता है और फिर उसे मिटाकर ले जाता है। तुम ऐसे ही एक काम करो
पहले गुरु के आश्रय में बैठकरके उसकी साधना की सींक से दीक्षा के माध्यम से अपने हृदय के घाट के ऊपर भी कृष्णनामाऽमृत रससिन्धु को इंगित कराकरके कथा में आकर के बैठो।
भागवत् समुद्र में से व्याख्या और श्लोकों की क ई लहरें उठेंगी अगर तुम्हारे हृदय में श्रीकृष्ण नाम होगा तो किसी न किसी दिन वो लहर उच्छरित होती हुई तुम्हारे हृदय पर पहुँचेगी और उस कृष्णनाम के साथ तुम्हारे हृदय को भी भीतर ले जाकर उसी समुद्र में रहने वाले नारायण के चरणों में संगमाहित कर देगी।
इसलिए ऐसा सतत् प्रयास करो।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When you write Rama on the sandy sea shore then in a few seconds the waves come splashing down and sweep it away, you again write Rama a bit further, then also the sea waves come as though they want to hold Rama close to their bosom! In the same way, do one thing;
Seek the refuge of your Sadguru and with the help of the twig of his Sadhana, get initiated with the ‘Krishna Naamamrit Rasasindhu’ etched on the ghat of your heart and then come and sit in the Katha.
From the sea of Srimadbhagwat, waves or Shlokas and narration will rise. If the Divine Name of Shree Krishna is there in your heart then positively the waves will come dancing within your heart and along with the Krishna Naam etched on your heart, they will carry both within the depths of the ocean to the abode of Shremann Narayana and offer it at the Divine Lotus Feet of the Lord.
Practice this regularly and continuously!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा त्वं समुद्रतीरे राम इति लिखसि तदा समुद्रः प्लवमानः आगत्य तत् नाम तरङ्गैः सह मेटयति अपहरति, ततः दूरं स्थित्वा पुनः नाम लिखसि, समुद्रः पुनः आगत्य तत् मेटयित्वा हरति। त्वं एतत् एकं कार्यं करोषि
सर्वप्रथमं गुरुस्य आश्रये उपविश्य तस्य साधनायाः हुकात् दीक्षाद्वारा कृष्णनाममृतं रसिंधुं हृदयस्य घाटे दर्शयित्वा कथायां आगत्य उपविशतु।
भागवतसागरात् व्याख्यानश्लोकानां बहूनां तरङ्गाः उत्पद्यन्ते। यदि भवतः हृदये श्रीकृष्णनाम अस्ति तर्हि कदाचित् वा अन्यदिने वा सा तरङ्गः भवतः हृदयं प्राप्स्यति तथा च तेन कृष्णनाम्ना सह भवतः हृदयम् अपि अन्तः नीत्वा तस्मिन् एव निवसतां जनान् प्राप्स्यति समुद्रं। नारायणचरणयोः विलयः भविष्यति।
अतः एतादृशान् प्रयत्नान् निरन्तरं कुर्वन्तु।
.. परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।