श्री राधारमणो विजयते
कोई सन्त सामने से आ रहा हो तो तुम सन्त को प्रणाम करोगे।
अब उसी समय तुमने देखा सामने से दो सन्त आ रहे हैं और जब वो करीब आए तो पता चला कि एक गुरु है दीक्षा गुरु जिससे हमने नाम मन्त्र लिया है एक वो आ रहा है और उसके बगल में एक सन्त और है। उस समय प्रणाम् तुम दोनों को करोगे पहले किसको करोगे? पहला प्रणाम् गुरु का होगा फिर सन्त का होगा। यही निष्ठा और श्रद्धा में फरक है यही श्रद्धा और विश्वास में फर्क है सन्त में हमारी श्रद्धा है गुरु में हमारा विश्वास है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If you see a Saint coming, you bow down in reverence!
At the same time, when you see carefully, you notice two people walking together, coming closer, one of them is your ‘Deeksha Guru’, who has blessed you with the ‘Naam-Mantra’ and the other is a saint. Seeing them, you will bow down to both of them, but whose feet will you touch before? The first Pranam shall be offered to the Guru and then the Saint. This denotes the subtle difference between ‘Nishtha ‘ or loyalty and ‘Shraddha’ or faith! We have faithful reverence for the Saint but are loyal only to our Sadguru!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदि अग्रतः कश्चन साधुः आगच्छति तर्हि भवन्तः साधुं नमस्कारं करिष्यन्ति।
इदानीं तस्मिन् एव काले भवद्भिः अग्रतः आगच्छन्तौ साधुद्वयं दृष्टौ समीपं आगतौ वयं ज्ञातवन्तः यत् एकः गुरुः, दीक्षागुरुः यस्मात् वयं नाममन्त्रं गृहीतवन्तः, तेषु एकः आगच्छति, अन्यः अपि अस्ति तस्य पार्श्वे साधुः । तस्मिन् काले भवद्भ्यां अभिवादनं करिष्यसि कस्य च प्रथमं वन्दसे । प्रथमं अभिवादनं गुरुं ततः सन्तं च भविष्यति। इति भक्तिश्रद्धाभेदः । इति श्रद्धाप्रत्यययोः भेदः । अस्माकं साधुः श्रद्धा गुरोः श्रद्धा च अस्ति।
~~परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।