आस्तिक किसको कहते हैं? वह नहीं जो भगवान को मानता हो। भगवान को मानने, नहीं मानने से भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता। कई लोग कहते हैं कि पूजा करेंगे जब भगवान की इच्छा होगी, वृंदावन तब जाएंगे जब भगवान के इच्छा होगी, सेवा तब करेंगे जब भगवान की इच्छा होगी।
पहले यह बताओ भगवान क्यों चाहेंगे कि तुम उनकी पूजा करो?
सही बात कहूँ, मन को तो अटकाना ही पड़ेगा। मन फँसेगा उनमें में तो अपने आप बात बनेगी। वह नहीं चाहते कि हम उनकी सेवा करें, ये तो हमारा मन अटक गया। ठाकुर जी हम तुम्हारी सेवा के बिना रह नहीं पा रहे हैं तुम्हें कोई जरूरत नहीं है फिर भी ले लो।
जैसे किसी के घर जाओ। उसको दस बार बोल दो कि हम खा कर आए हैं, पेट हमारा भरा हुआ है फिर भी सामने वाला कहता है, हमारा इतना मन है एक तो ले लो, थोड़ा सा ले लो, फांक ही ले लो, एक बदाम भी उठा लो।
इसका मतलब क्या है कि हमको तुम्हारे खाने की जरूरत नहीं है फिर भी संत कहते हैं इतना पीछे पड़ रहा है तो ला मैं एक बदाम खा लेता हूँ।
ठाकुरजी के साथ भी यही करना पड़ेगा। उन्हें तुम्हारे सेवा की कोई जरूरत नहीं है। कि वो हम पर कृपा करें हम उनकी सेवा करें। फिर अगर मन होता की कृपा करके सेवा करवाएं तो किसी पर भी कर देते।
इस फालतू के आलस में नहीं फंसना चाहिए। कि भगवान की कृपा होगी तो हम भगवान की सेवा करेंगे। भगवान की कृपा होगी तो हम वृंदावन जाएंगे। यह बहाना नहीं लगाना चाहिए। बल्कि हमें तो करना चाहिए, आप हमारी सेवा के बिना रह सकते हो ठाकुरजी! हम आपकी सेवा के बिना नहीं रह सकते।
हम यूँ कह दे- अगर राधारमणजी हम पर कृपा करेंगे तो हम उनकी सेवा करेंग। ऐसा सोच कर बैठ जाए तो राधारमण जी के पास सेवकों की कमी है क्या? 40 खानदान तो अगल बगल में ही रहते हैं। हम नहीं तो दूसरे आ जाएंगे। कोई गोस्वामी तैयार ना हो तो आधी दुनिया घुसने को तैयार है कि हम सेवा कर देंगे।
उनके पास सेवक की कमी है क्या? यह तो हमारी इच्छा है कि लालन आप किस चीज से रिझोगे?
आप बताओ जैसे भरे पेट के बाद भी अगर किसी के मन के भाव आग्रह को देखकर कि थोड़ा सा ले लो। थोड़ा सा ले लो तो अतिथि केवल उसकी भाव की पूर्ति के लिए एक बादाम को मुख में रखकर खा लेता है।
ऐसा ही ठाकुरजी के साथ करना पड़ेगा।
हमारी सेवा में ऐसा क्या है जो हमसे लेंगे? अभी सेवा जानते भी नहीं हैं। आरती करना भी नहीं आता। 90% भारत को यह नहीं पता होगा कि आरती कितनी बार घुमाई जाती है। हम तो आरती उतनी देर घुमाते हैं जितनी देर भजन चलता है। पर भजन से आरती का कोई संबंध नहीं है।
पुराने मंदिरों में जाओ तो क्या भजन बजता है? राधारमणजी के मंदिर में तो घंटा बजता है। और उसके बाद स्तुति होती है। तो हमारी सेवा में ऐसी कौन सी ताकत है जो ठाकुरजी लेना चाहेंगे हमसे?
हमारी ये तो गोपाल! हम अटक गए, हम करना चाहते हैं। पीछे लग जाओ पीछे। कोई पता नहीं ठाकुर जी कभी एक बादाम उठा ले। एक छोटी सी भी बात स्वीकार कर ले।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Who is a ‘Aastik’ or a believer! He is not the one who just believes in God. Whether you believe or disbelieve, it makes no difference to the Almighty! Many people say that I will do Pooja, when the Lord wills, I will go to Vrindavan when He wills or I will do ‘Sewa’ when He wills!
First of all, tell me, why will the Lord want that you worship Him?
To tell you the truth, you will first have to fix your mind on Him. When your mind is fixed, only then will you be able to proceed. He does not want that we should do His ‘Sewa’ but our mind is fixed on Him, so we do it! O’ Lord! We can’t stay without serving you, we know that you don’t need it but still, please accept it for our sake!
Say, you go to meet someone. You go on saying that you have just eaten and you are absolutely full and can’t eat a morsel but the host is very insistent and forces you to take a little bit, just one piece or just an almond for his sake!
What does this mean? Though, we don’t want to eat but the Saints say that for the other person’s pleasure, accept something!
The same applies with ‘Shree Thakurji’. He does not need our ‘Sewa’. His benevolence makes Him accept our service. When He wills it, He can bless anyone and accept his/her service!
Please do not get stuck into unnecessary slothfulness that whenever the God wills, we will do the ‘Sewa’. When he wills, we will go to Vrindavan. Please don’t make such lame excuses. Instead, you should say; ‘Prabho! You can stay without our ‘Sewa’ but we cannot stay without serving you!’
If you say that if Shree Radha Raman showers His grace on me, I will do His ‘Sewa’? If you think like this and sit slothfully then, is there any shortage of people who are ready to serve Shree Radha Raman? Forty families stay all around Him, all the time! If not them then others are ready. If any ‘Goswami’ is not ready then more than half of the world will rush to serve Him!
Does He have any shortage of servants? It is upon us to say, ‘Laallan! What can we do to please you?’
Going back to my example, even though you were full, just for the sake of your host, you picked up an almond and ate it!
You will have to do the same with the Lord!
What is so special in your ‘Sewa’ that He would want to accept it? You don’t even know what is ‘Sewa’! You can’t even do the Arti properly! 90% of Indians would not know, how many times the Arti has to be rotated! Normally, people do it as long as it is being sung! But this has nothing to do with the Arti, per se!
If you go to the old temples then do you hear any Arti or Bhajan being sung during the Vesper service? In Shree Radha Raman temple the gong bell or the ‘Ghanta’ is rung. It is followed by ‘Stuti’. So, what is so great about our ‘Sewa’ that He would want to take it from us?
Hey Gopal! We can’t do without you, our hearts are fixed on you, hence we want to offer our service. Be after Him! Who knows, with your persuasion when He will pick up an almond from your plate? Even it may be something insignificant, but He just chooses to take it!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
कः आस्तिकः इति उच्यते? न तु यः ईश्वरं विश्वसिति। भवान् ईश्वरं विश्वसिति वा न वा इति ईश्वरस्य महत्त्वं नास्ति। अनेके जनाः वदन्ति यत् ईश्वरस्य इच्छायां पूजा करिष्यामः, ईश्वरस्य इच्छायां वृन्दावनं गमिष्यामः, ईश्वरस्य इच्छायां सेवा करिष्यामः।
प्रथमं कथयतु यत् ईश्वरः किमर्थं इच्छति यत् भवान् तस्य पूजां करोतु?
सम्यक् वक्तुं मनः निवारयितव्यम्। यदि तेषु मनः उलझति तर्हि स्वयमेव विषयाः भविष्यन्ति। सः न इच्छति यत् वयं तस्य सेवां कुर्मः, अस्माकं मनः अस्मिन् विषये अटत्। ठाकुर जी, भवतः सेवां विना वयं जीवितुं न शक्नुमः, भवतः आवश्यकता नास्ति, अद्यापि गृहाण।
यथा कस्यचित् गृहं गच्छतु। तस्मै दशवारं कथयतु यत् वयं भोजनानन्तरं आगताः, अस्माकं उदरं पूर्णम् अस्ति तथापि अग्रे स्थितः व्यक्तिः वदति, अस्माकं एतावत् मनः अस्ति, एकं गृह्यताम्, किञ्चित् गृह्यताम्, एकं खण्डं गृहाण, एकं बादामम् अपि उद्धृत्य।
तव भोजनस्य अस्माकं आवश्यकता नास्ति इति किम्, तथापि साधवः वदन्ति यत् यदि भवन्तः एतावत् पश्चात्तापं कुर्वन्ति तर्हि अहं बादामं खादामि इति।
ठाकुरजी इत्यनेन सह अपि तथैव कर्तव्यं भविष्यति। तेषां भवतः सेवायाः आवश्यकता नास्ति। सः अस्मान् आशीर्वादं ददातु यथा वयं तस्य सेवां कुर्मः। तदा यदि अहं दयालुतया सेवां कर्तुम् इच्छामि तर्हि अहं कस्यचित् उपरि कृतवान् स्यात्।
अस्मिन् निष्प्रयोजने आलस्ये न फसयेत्। यत् यदि ईश्वरस्य अनुग्रहः अस्ति तर्हि वयं ईश्वरस्य सेवां करिष्यामः। ईश्वरप्रसादेन वयं वृन्दावनं गमिष्यामः। एतत् अपवादं न प्रयोक्तव्यम्। अपितु अस्माभिः करणीयम्, भवान् अस्माकं सेवां विना जीवितुं शक्नोति ठाकुरजी! भवतः सेवां विना वयं जीवितुं न शक्नुमः।
अस्माभिः एवं वक्तव्यं – यदि राधारमञ्जी अस्मान् आशीर्वादं ददाति तर्हि वयं तस्य सेवां करिष्यामः। यदि भवान् एवं चिन्तयन् उपविशति तर्हि राधारमण जी इत्यस्य भृत्यानां किमपि अभावः अस्ति वा? ४० परिवाराः पार्श्वे पार्श्वे निवसन्ति । यदि न नः तर्हि अन्ये आगमिष्यन्ति। यदि कोऽपि गोस्वामी सज्जः नास्ति तर्हि वयं सेवा करिष्यामः इति वदन् अर्धं जगत् प्रवेशाय सज्जः अस्ति।
किं तेषां भृत्यानां अभावः अस्ति ? अस्माकं इच्छा अस्ति यत् त्वं किं प्रसन्नः भविष्यसि ललन।
त्वं मां वदसि, पूर्णोदरस्य अनन्तरम् अपि, यदि त्वं कस्यचित् भावनां पश्यसि, किञ्चित् ग्रहीतुं आग्रहं च पश्यसि। यदि भवन्तः किञ्चित् गृह्णन्ति तर्हि अतिथिः केवलं स्वकामस्य पूर्तये एव मुखे बादामं कृत्वा खादति।
ठाकुरजी इत्यनेन सह अपि तथैव कर्तव्यं भविष्यति।
अस्माकं सेवायां किम् अस्ति यत् अस्मात् हर्तुं शक्यते ? ते इदानीं सेवामपि न जानन्ति। आरतीं कर्तुं अपि न जानन्ति। भारतस्य ९०% जनाः न ज्ञास्यन्ति स्म यत् आरती कियत्वारं परिभ्रमति। वयं यावत् भजनं गच्छति तावत् आरतीं परिभ्रमामः। परन्तु आरती इत्यस्य भजनेन सह किमपि सम्बन्धः नास्ति।
पुरातनमन्दिरेषु गच्छन् स्तोत्राणि वाद्यन्ते वा ? राधारमञ्जीमन्दिरे घण्टी ध्वन्यते। ततः च स्तुतिः। अतः अस्माकं सेवायां का शक्तिः अस्ति या ठाकुरजी अस्मात् ग्रहीतुं इच्छति?
एषः अस्माकं गोपालः ! वयं अटन्तः, इच्छामः। पृष्ठतः गच्छतु न जानामि ठाकुर जी कदापि बादामम् उद्धर्तुं शक्नोति वा। लघु वस्तु अपि स्वीकुरुत।
.. परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।