||श्री राधारमणो विजयते||
शरण में रख दिया जब माथ हमें किस बात की चिंता….
या तो चिंता होगी या तो सद्गुरु की कृपा होगी। जीवन में भगवान जब सोचते हैं कि अब इसे मैं अपना बनाऊँ तो
जैसे किसी घर वाले को किसी घर की कन्या पसंद आ जाए तो खोजा जाता है उस घर का कौन व्यक्ति है जो उसे पहचानता है? तो उस आदमी को खोज कर वहाँ खबर भिजवाई जाती है
कि ऐसी ऐसी बात है हम लोगों को कन्या पसंद है आपको ठीक ठीक लगे तो बातचीत आगे बढ़ाओ…
श्रीठाकुरजी को भी जब कोई पसंद आ जाता है तो गुरुरूपी खबरी भेज देते हैं। अब तुम्हारी राजी हो तो हमने तो हाथ भेज दिया है अब बस तुम अगर हाथ थमाने को तैयार हो…
उन्हीं के हाथ में जब हाथ, हमें किस बात की चिंता
हमारे हैं श्री गुरुदेव, हमें किस बात की चिंता…
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II SHREE Radharamanno Vijayatey II
‘Sharan mein rakh diya jab maath, hummey kis baat ki chinta…’
Either you will get worried or else you will be blessed by Sadguru’s grace. When the Almighty thinks that I must embrace this person then,
Say, some family likes a girl from another family then the girl’s family starts looking out for a contact who knows the girl’s family! When they get the contact then they send a message across to the girl’s family.
So and so family has liked your daughter, in case you are also keen then we can proceed to firm up the relationship……
In the same way when Shree Thakurji likes someone then He sends the Guru as his go-between. From my side I am ready to accept you, now it is entirely upto you to give your hand in my hand….
‘Unhee ke haath mein jab haath, hummey kis baat ki phir chinta!
Humarey hain Shree Gurudev, hummey kis baat ki chinta….
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
यदा शिरः आश्रये स्थापितः भवति तदा अस्माभिः किं चिन्ता कर्तव्या…
चिन्ता भविष्यति वा सद्गुरुप्रसादः स्यात्। जीवने यदा ईश्वरः चिन्तयति यत् इदानीं मया तत् मम कर्तव्यम्, तर्हि
यथा – यदि कश्चन कुटुम्बस्य सदस्यः कस्मिंश्चित् कुटुम्बस्य बालिकां रोचते तर्हि सः अन्वेषयति यत् तस्य कुटुम्बस्य कोऽपि व्यक्तिः यः तां परिचिनोति ? अतः सः व्यक्तिः अन्वेषितः भवति, तत्र वार्ता प्रेष्यते च।
एतादृशम् अस्ति, अस्माकं बालिकाः रोचन्ते, यदि भवद्भ्यः रोचते तर्हि वार्तालापं अग्रे नेतुम्…
श्री ठाकुरजी यदा यदा कश्चित् रोचते तदा गुरुरूपेण सन्देशं प्रेषयति। इदानीं यदि भवान् इच्छति तर्हि वयं हस्तं प्रेषितवन्तः। अधुना केवलं यदि भवान् अस्माकं हस्तं दातुं सज्जः अस्ति…
यदा अस्माकं हस्तौ तेषां हस्ते भवति तदा किमर्थं चिन्ता कर्तव्या ।
श्री गुरुदेव अस्माकं, किं चिन्ता अस्ति…
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।