श्री राधारमणो विजयते||
दुनिया का सबसे बड़ा जेल आपकी चिंता है जिसमें आपका विवेक बंद रहता है आपकी बुद्धि बंद रहती है। जब आप चिंता में रहते हो तो आपकी सारी इन्द्रियाँ जेल में बंद रहती है। आप जैसे देखना चाहते हो वैसे देख नहीं सकते, जैसा सुनना चाहते हो वैसे सुन नहीं सकते, जहाँ चलना चाहते हो वहाँ चल नहीं सकते।
कबीर कहते हैं-
चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाय।।
भागवत् जी में तुम वस्तुएं चढ़ाते हो महाराज श्री कहते हैं- वस्तु चढ़ाने की जरूरत नहीं है चढ़ाना चाहते हो तो भागवत् जी के ऊपर अपनी चिंता चढ़ाओ। प्रसाद क्या मिलेगा? जब तुम यहाँ चिंता चढ़ाओगे तो चिंतन प्रसाद में पाओगे।
अगर सच में अपने जीवन में भजन का मजा लेना चाहते हो तो मंदिर में बाहर चप्पल उतार कर जाओ न जाओ फरक नहीं चिंता उतार कर जाओ। तब तो उस ध्यान का मजा होगा। आँख बन्द करी वही घूमे जा रहा है क्या फायदा? अगर तुम्हारे मन में इतना भी भरोसा नहीं ठाकुरजी के प्रति तो भजन करने कि अपेक्षा ही क्यों ?
पूरी ज़िन्दगी न सौपों अभी इतना confidence नहीं है सबकुछ तुम ही सम्भालो पर कम से कम दस मिनट जब दिया जलाकर भगवान से नजर मिलाने बैठते हो उस दस पन्द्रह मिनट तो चिंता का परित्याग कर ही सकते हो। तभी भरोसा दृढ़ होगा।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
The biggest jail in the world is one’s worries wherein your intellect and ‘Vivek’ or discrimination is imprisoned. When you are drowned in worries then all the sense organs are imprisoned. You can’t see the way you want to, you can’t hear the way you want to hear and you feel cramped to go where you feel like going.
Kabir Dasji says-
‘Chinta aisi daakini kaat kaleja khaaya’II
You offer different things on Srimadbhagwat then Maharajji says; you don’t need to offer things or money here, if at all you are keen to offer something then just offer your worries! What will be the Prasad you will receive? When you offer your ‘Chinta’, then you will get ‘Chintan’ as Prasad.
If you truly want to enjoy Bhajan in your life then when you leave your footwear outside the temple, leave your worries as well. You will then be able to enjoy your ‘Dhyana’. When you close your eyes, your mind just keeps on wandering here and there, then what’s the point? If you don’t have an iota of trust on Shree Thakurji, then why even think of doing any Bhajan?
Well, if you don’t have the confidence to handover your entire life in the hands of the Divine, fine; but when you sit in front of the Lord for a few minutes then for that time at least you can keep your worries aside! When you do this, only then will your trust or belief will get cemented!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
जगति बृहत्तमः कारागारः भवतः चिन्ता अस्ति, यस्मिन् भवतः अन्तःकरणं निमीलितं तिष्ठति, भवतः बुद्धिः निमीलितः तिष्ठति। चिन्तायां तव सर्वाणि इन्द्रियाणि कारागारे तिष्ठन्ति । यथा त्वं द्रष्टुम् इच्छसि तथा न शृणोषि, यथा श्रोतुमिच्छसि, तत्र गन्तुं न शक्नोषि ।
कबीरः कथयति-
चिन्ता तादृशी डाकिनी हृदयं दंशति खादति।
भवान् भागवत जी इत्यस्मै वस्तूनि समर्पयति। महाराज श्री कहते – वस्तु अर्पित करने की आवश्यकता नहीं है। यदि अर्पितुम् इच्छसि तर्हि भागवत जीय स्वचिन्ता अर्पयतु। किं प्रसादं प्राप्स्यसि ? यदा त्वं चिन्तानि अत्र समर्पयसि तदा प्रसादरूपेण प्राप्स्यसि।
यदि भवान् वास्तवमेव स्वजीवने भजनस्य आनन्दं प्राप्तुम् इच्छति तर्हि चप्पलम् उद्धृत्य मन्दिरं गच्छतु, गच्छ वा न वा इति महत्त्वं नास्ति, चिन्ताम् उद्धृत्य गच्छतु। तदा तस्मिन् ध्याने विनोदः भविष्यति। नेत्रे निमील्य भ्रमणेन किं प्रयोजनम् ? यदि भवतः ठाकुरजी प्रति तावत् विश्वासः नास्ति तर्हि तस्य भजनस्य अपेक्षा किमर्थम्?
भवतः सम्पूर्णं जीवनं न समर्पयतु, भवतः इदानीं तावत् आत्मविश्वासः नास्ति, भवतः सर्वं स्वयमेव पालनं कर्तुं शक्यते, परन्तु न्यूनातिन्यूनं दशनिमेषान् यावत् यदा भवतः दीपं प्रज्वलितं कृत्वा ईश्वरं पश्यन् उपविशति, तानि दश पञ्चदशनिमेषाणि यावत् चिन्तां त्यक्तुं शक्नोषि। तदा एव विश्वासः प्रबलः भविष्यति।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..