श्री राधारमणो विजयते
आपके जीवन के हानि, आपके जीवन के लाभ, आपके जीवन का यश, अपयश, दुर्घटना या सुविधा इस पर भगवान दखल नहीं देते। और सच बात कहूँ तो इसमें उनकी कोई आवश्यकता भी नहीं।
और एक और इस पर विचार किया जा सकता है- जो घटना घटी है वह हानि है कि लाभ है? यह सिचुएशन कम डिसाइड करती है, परसेप्शन ज्यादा डिसाइड करता है। आपके साथ जो हुआ वह सुख था कि दुख था इसका निर्णय आपका अपना परसेप्शन करेगा, आपका अपना दृष्टिकोण करेगा।
वहीं घटना एक व्यक्ति के लिए बड़ी आनंदमय हो सकती है और वही घटना किसी दूसरे के लिए बड़ी कष्टमय हो सकती है। अब इसका क्या विचार किया जाए? देखने वाली दृष्टि पर निर्भर करता है कि वह इसे कैसे देखा है।
ऐसे ही भोजन दो लोग करते हैं एक कहता है मजा आ गया, मेरे स्वास्थ्य के अनुकूल था। दूसरा कहता है आपने क्या बनाया मुझे बिल्कुल भी आनंद नहीं आया। सबकी अपनी व्यवस्था है।
हानि लाभ जीवन मरण।। गीता में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा- शीतोष्ण सुख दुखेशु तथा मानापमानयो।।
आपकी स्थिति है, आपका अपना विचार है की जो घटना घटी है वह सुख है कि दुख है। आप उस घटना को शोक भी बना सकते हो, आप उसी घटना को उत्सव भी बना सकते हो।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Almighty doesn’t interfere with the loss or profit, your fame or infamy, an accident or ease in your life. To tell you the truth, you don’t need Him for all these things.
You can think about it in a slightly different way – whatever has happened, whether it is a profit or a loss? This is not decided by the situation, it is more dependent on the perception. Whatever has happened, whether it is happiness or sorrow depends on your perception, your own thinking is the deciding factor.
The same situation can be a matter of joy for some but misery for some one else. Now, how does one think about it? It is entirely dependent upon how you look at it.
When two people sit down for dinner, one says that the food was delicious and well suited for my health, while the other person feels that it was horrible and he didn’t enjoy at all! Everyone has his own outlook.
‘Haani laabh jeevan marann’||
In the Gita, Shree Krishna very clearly says – ‘Sheettoshna sukkh-dukkheyshu tatha maanapamaanayo’||
It is your situation, your outlook, whatever has happened, whether it is joyous or miserable? It’s upto you, you can make it a very joyful celebration or you may cry over it!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
देवः भवतः प्राणहानिः, भवतः जीवने लाभे, यशः, बदनामी, दुर्घटना, भवतः जीवनस्य सुविधा वा न बाधते। सत्यं च वक्तुं शक्यते यत् अस्मिन् तेषां आवश्यकता नास्ति।
एकं च अधिकं विचारयितुं शक्यते – या घटना घटिता सा हानिः अस्ति वा लाभः वा ? स्थितिः न्यूनं निर्णयं करोति, प्रतीतिः अधिकं निर्णयं करोति। भवतः यत् घटितं तत् सुखम् आसीत् वा दुःखं वा इति भवतः स्वस्य प्रतीतेन, स्वस्य दृष्ट्या निर्णयः भविष्यति।
एकस्यामेव घटना एकस्य व्यक्तिस्य कृते अतीव आनन्ददायकं भवितुम् अर्हति तथा च एषा एव घटना अन्यस्य कृते अतीव दुःखदः भवितुम् अर्हति । अधुना अस्माभिः एतस्य विषये किं चिन्तनीयम् ? कथं दृष्टं द्रष्टारदर्शनमाश्रित्य।
द्वौ जनाः एतादृशं भोजनं खादन्ति, एकः वदति यत् एतत् आनन्ददायकम् आसीत्, मम स्वास्थ्याय हितकरम् आसीत्। अन्यः कथयति यत् त्वया किं कृतम्, मया तत् किमपि न भुक्तम्। सर्वेषां स्वकीया व्यवस्था अस्ति।
हानिः लाभः प्राणः मृत्युः च। गीतायां श्रीकृष्णः स्पष्टतया उक्तवान् – संयमी सुखं, शोकं, आदरं च।
भवतः स्थितिः, भवतः स्वमतम् अस्ति यत् या घटना घटिता सा सुखम् अस्ति वा दुःखम्। भवन्तः तत् आयोजनं शोकं कर्तुं शक्नुवन्ति, तदेव आयोजनं उत्सवं अपि कर्तुं शक्नुवन्ति।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥