किसी भी प्रकार का विकार जीवन में पतनशील ही होता है। पर वैष्णवीय दर्शन के अनुसार जितने भी विकार संयुक्त गुण हैं अगर उन विकार का भी प्रयोग सत्वसम्पन्न वस्तु के लिए हो तो निवृत्ति सम्भव है।
काम पतन है पर गोप्यः कामात्।। भय से बड़ी अशांति दूसरी नहीं है पर भयात् कंसोह।। कंस ने भय से कृष्ण को पा लिया। ऐसे ही पुत्रैषणा भी इतिहास में आत्मदेव जैसे ब्राह्मणों को पतनशील बना देती है। भागवत का प्रसङ्ग है।
श्रेष्ठ ब्राह्मण अश्वत्थामा महाभारत में पतनशील हो जाता है पदैषणा के कारण। ऐसे ही धृतराष्ट्र में पुत्रैषणा का जन्म उसके पतन कारण बन गयी। हालांकि कोई सी भी एषणा जीवन में पतन ही देती है पर दशरथ के मन में राम जैसे पुत्र के लिए उस एषणा का जन्म हो जाय तो ये पतनशील स्वभाव भी निर्वाण की परम उपलब्धि जीवन में प्रदान कर सकता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
Any apparition or a disorder in life leads to one’s downfall. According to the Vaishnava Darshan, all the disorders put together and used for doing good or endowed with the quality of goodness, then their elimination or eradication is possible.
Kama leads to one’s downfall but, ‘Goppyaha: Kamatt ||’ Fear is one of a greatest source of disturbance but, ‘Bhayatt Kansoha ||’ Kansa attained Shree Krishna out of his fear. In the history we read that the desire for a son becomes the cause of the downfall for a learned Brahmin like ‘Atmadeva’. This is a Katha from the Bhagwat.
A great Brahmin like ‘Ashwathama’ in the Mahabharat goes towards his downfall merely out of his desire for a position of importance. Similarly, ‘Dhritarashtra’s’ attachment or ‘Moha’ for his son becomes the cause of his misery. In other words, any sort of a desire in life leads towards ruin but on the other hand we see that Maharaja Dashrath had the desire to get a son like Shree Rama and this leads towards the ultimate achievement of Nirvana, in his life!
|| Param Aradhya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
री पुण्डरीक जी सूत्र (२९-०५-२०२३)
कोऽपि प्रकारः विकारः जीवने केवलं क्षयकारी एव भवति। परन्तु वैष्णवीदर्शनानुसारं यदि सर्वे दोषाः संयुक्तगुणाः सन्ति, यदि ते दुष्टाः सद्धनस्य कृते अपि प्रयुक्ताः भवन्ति तर्हि निवृत्तिः सम्भवति।
कार्यं पतनम् अस्ति किन्तु गुप्तरूपेण: कामत्। भयात् बृहत्तरः अन्यः अशान्तिः नास्ति, परन्तु भयं परिहर्तुं शक्यते । कंसः भयात् कृष्णं प्राप्तवान्। तथैव प्रसवः अपि आत्मदेवसदृशान् ब्राह्मणान् इतिहासे दमनं करोति। भागवतस्य सन्दर्भः अस्ति ।
उत्तम ब्राह्मण अश्वत्थामा महाभारते पडिशनात् क्षीणः भवति। तथा धृतराष्ट्रे कन्याजन्म एव तस्य पतनस्य कारणम् अभवत् । यद्यपि कोऽपि इच्छा जीवने पतनं ददाति, परन्तु यदि रामसदृशस्य पुत्रस्य सा इच्छा दश्रथस्य मनसि जायते तर्हि एषः क्षयप्रकृतिः जीवने निर्वाणस्य परमसिद्धिं अपि प्रदातुं शक्नोति।
.. परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।