सही और गलत का निर्णय समय से होता है। और जो समय के मायन्यूट्स को जान लेता है वो जीवन में बड़ा सफल होता है। भोजन करना बहुत अच्छा है पर असमय पर किया जाय तो विष है। और वही भोजन ठीक समय पर किया जाय तो औषधि है।
हर चीज बहुत बढ़िया है। सोने के वक्त सोना बढ़िया है। कोई 6 बजे सोने जाएगा तो सब मना करेंगे, अभी मत सो अभी संध्या है। अभी नहीं सोना चाहिए। कोई रात में 2 बजे 3 बजे उठकर बैठा हो तो सब पूछेंगे सो क्यों नहीं रहा?
समय की सुशीलता हर क्रिया को समन्वित करती है। इसलिए भगवान ने कहा- मैं समय हुँ। और उसके अनुसार हर कार्य को करना अत्यंत शोभनीय है। ससमय पर कोई भी क्रिया हो तो उसकी शोभा होती है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
The decision whether it is right or wrong is decided by time. The one who is able to understand the minuteness or the importance of time, succeeds in life. It’s good to eat food but if you eat at the wrong time, it will be harmful or detrimental for your health. The very same food eaten at the proper time acts as an elixir!
Everything is very good. It is good to sleep at the right time. If someone goes to sleep at 6 in the evening then people will say that don’t sleep now as it is evening and not the right time to sleep. So, don’t sleep now. If someone wakes and sits up at 2/3 AM then one might ask, why aren’t you sleeping?
The appropriation of time is very important in the proper conclusion of any task. That is why the Lord declares, ‘I am time’! To do everything taking into account the propriety of doing it at the right time is indeed very commendable. Anything done at the right time becomes beautiful and appreciable!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (२९-०६-२०२३)
सम्यक् अनुचितं च कालेन निर्णीयते। यः च कालस्य निमेषान् जानाति सः जीवने अतीव सफलः भवति। अन्नं खादनं बहु हितकरं किन्तु अकाले कृतं चेत् विषम्। स एव च भोजनं औषधं यदि सम्यक् समये खादितम्।
सर्वं महत् अस्ति। सुप्तस्य निद्रा साधु । यदि कोऽपि ६ वादने निद्रां गच्छति तर्हि सर्वे अङ्गीकुर्वन्ति, इदानीं मा निद्रां कुर्वन्तु, सायंकालः अस्ति। इदानीं न निद्रा कर्तव्या। यदि कश्चन रात्रौ २ वादने जागृत्य उपविष्टः अस्ति तर्हि सर्वे पृच्छिष्यन्ति यत् सः किमर्थं न सुप्तः?
कालस्य लचीलापनं प्रत्येकं कार्यं समन्वययति। अत एव ईश्वरः अवदत् – अहं कालः अस्मि। तदनुसारं च प्रत्येकं कार्यं कर्तुं अतीव सुन्दरम्। यदि काले कश्चित् कर्म क्रियते तर्हि तत् सुन्दरम्।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।