यज्ञोपवीत अवश्य धारण करनी चाहिए। जो यज्ञोपवीत धारण नहीं करता उसका विवाह संस्कार संभव नहीं होता। इसलिए आजकल 10 मिनट पहले जनेऊ डाल देते हैं 10 मिनट के ब्रह्मचारी जी। बिना मुंडन के यज्ञोपवीत नहीं हो सकता। इसलिए उचित समय में जब 7- 8 – 9 वर्ष का बालक हो तब उस समय हमें उसका यज्ञोपवीत संस्कार अवश्य कर देना चाहिए। और अब भी अगर बस में हो तो पश्चाताप करके अभी ही करवा देना चाहिए।
यह दायित्व माता-पिता का है। छोटा बच्चा थोड़ी ना जानता है। वह बच्चा है आपको बताना पड़ेगा। हम बालकों के मित्र जरूर बने पर माता-पिता भी तो बने। आज 90% मित्र ही बने रहते हैं सब। कोई भोजन करने जाएंगे कहीं तो 40 साल का पिता, 8 साल के छोरा से पूछ रहा है आप क्या खाओगे? अब वह क्या बताएगा कि वह क्या खाएगा? आप जो खवा दो उसे वही खाना पड़ेगा।
यह यहां की व्यवस्था है। माता-पिता के द्वारा संस्कार किया जाना चाहिए। उस पुत्र को अपने पिता की अंत्येष्टि देने का अधिकार नहीं होता, जिसका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं होता। तो तुम उसका यज्ञोपवीत संस्कार ना करा कर अपनी खुद अपने हाथ से गति बिगाड़ रहे हो।
अवश्य हमें करना चाहिए। इस बात को हम बहुत आधुनिक दृष्टि से देखें, वैज्ञानिक दृष्टि से देखें।
अब यज्ञोपवीत संस्कार के क्या-क्या फायदे हैं यह अलग विषय हो जाएगा।
वो ब्रह्मसूत्र, वो यज्ञोपवीत ये ब्रह्मसूत्र पहनते समय व्यक्ति को स्मरण दिलाता रहता है कि हम सब केवल एक सामान्य मानव के नहीं बल्कि भगवान के भी पुत्र हैं। स्मरण दिलाता है। अपने धर्म को बड़े गर्व से स्वीकार करना चाहिए। उस सबके पीछे परम वैज्ञानिकता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Indeed, one should wear the sacred thread or ‘Yagyopaveet’. If one has not been given the sacred thread then he cannot enter into matrimony! These days people wear the sacred thread or ‘Janeau’ just for ten minutes and become a temporary Brahmachari. Without shaving the head, the sacred thread ceremony cannot take place! That is why, when the boy is 7/8/9 years old, the ‘Yagyopaveet-Sanskar’ should be done. If for some reason it has not been done then the scriptures have given us a via media that one has to perform the ceremony of ‘Praayaschit’ or atonement and one can take the sacred thread before the marriage.
This becomes the responsibility of the parents. How will a little boy know these things? You will need to explain the entire ritual to the child. It is good to become the friend of your children but you need to even fulfil the responsibility of your parenthood. Today, 90% people only just say that they treat their children as friends. If the family goes out for a meal, the forty years old father is asking the eight-year-old son, what will you eat? Now, what will he say what he will eat? Whatever you make him eat, he will eat!
This needs to be done by the Vaishnav families. The parents should instil virtues or give good Sanskar to their children. Let me tell you, the son will not have the right to perform the last rites of his father if the ‘Yagyopaveet-Sanskar’ has not been done. By not getting the ritual of the sacred thread done in time, you are cutting your own feet!
We should pay attention and get it done! We should view it from the scientific angle as well as the present times!
What are the benefits of performing the ‘Yagyopavvet-Sanskar’, it is a different topic!
That ‘Brahma-Sutra’ or the ‘Yagyopaveet’ when is being worn by the individual, it reminds him that he is not just an ordinary human being but his lineage starts from God! It is a reminder of this fact! We should accept our Dharma with pride and respect. It has a scientific background behind it as well!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यज्ञोपवीतं अवश्यं धारयितव्यम्। न सम्भवति विवाहः पुण्यसूत्रं न धारयति । अत एव अद्यत्वे ते १० मिनिट् ब्रह्मचारी जी इत्यस्य १० मिनिट् पूर्वं जनेउ स्थापयन्ति। यग्योपवीतः मुण्डनं विना न भवितुं शक्नोति। अत एव यदा बालकः यथासमये ७-८-९ वर्षीयः भवति तदा अस्माभिः तस्य कृते यज्ञक्रियाः कर्तव्याः। इदानीमपि यदि सम्भवति तर्हि पश्चात्तापं कृत्वा इदानीं एव तत् सम्पादयतु।
एतत् मातापितृणां दायित्वम् अस्ति। अल्पः बालकः अल्पं जानाति। सः बालकः अस्ति, भवता वक्तव्यम्। वयं बालकानां मित्राणि अवश्यमेव अभवम, परन्तु मातापितरौ अपि अभवम । अद्य सर्वेषां ९०% जनाः मित्राणि एव तिष्ठन्ति । ४० वर्षीयः पिता ८ वर्षीयं बालकं पृच्छति, यदि कोऽपि भोजनं कर्तुं गच्छति तर्हि भवान् किं खादितुम् इच्छति? इदानीं किं वक्ष्यति किं खादिष्यति ? भवता यत् किमपि पोष्यते तत् तस्य खादितव्यं भविष्यति।
इति अत्र व्यवस्था । संस्काराः मातापितृभिः कर्तव्याः। तस्य पुत्रस्य पितुः अन्तिमसंस्कारस्य अधिकारः नास्ति यज्ञस्य न भवति । अतः त्वं तं यज्ञं न कृत्वा स्वहस्तेन वेगं दूषयसि।
अवश्यं अस्माभिः कर्तव्यम्। अयं विषयः अतीव आधुनिकदृष्ट्या, वैज्ञानिकदृष्ट्या पश्यामः ।
अधुना यज्ञोपवीतसंस्कारस्य किं लाभाः, पृथक् विषयः भविष्यति।
सः ब्रह्मसूत्रः, सः यज्ञोपवीतः, एतत् ब्रह्मसूत्रं धारयन् व्यक्तिं स्मारयति यत् वयं सर्वे न केवलं साधारणस्य मानवस्य पुत्राः अपितु ईश्वरस्य अपि पुत्राः स्मः। स्मरणं करोति। स्वधर्मं महागर्वेण स्वीक्रियेत् । तस्य सर्वस्य पृष्ठतः परमं वैज्ञानिकता अस्ति।
.. परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।