जो हमारे मन को मथ दे उसको काम कहते हैं, जो काम के मन को मथ दे उसे कृष्ण कहते हैं। कामना की पूर्ति छोटा विषय है क्योंकि कामना की पूर्ति पुनः कामना को उत्पन्न कर सकते हैं पर कामना की निवृत्ति पूर्ण संतुष्टि का स्वरूप है।
भगवान जब भी प्रकट हुए हैं तब अनंत अवतारों में तव तव प्रभु धरे विविध शरीरा।। इन विविध शरीरों को धरके परमात्मा ने कामना की पूर्ति की है पर रास मंडल में जो परमात्मा प्रकट हुए हैं उन्होंने सारी कामनाओं की निवृत्ति कर दी है। साक्षात मनमथ मनमथ।।
पूरे जग में घूम आओ पर वृंदावन कि सी छटा कहीं और नहीं है। जहाँ धाम की ही स्वतंत्र उपासना है। किसी भी और स्थान पर क्षेत्र की उपासना नहीं है, क्षेत्र में उपासना है।
जो मुक्ति चाहते हैं वो मुक्ति क्षेत्र में बैठकर उपासना करते हैं, जो भक्ति चाहते हैं वो भक्ति क्षेत्र में रहकर उपासना करते हैं। जितने धाम हैं उन सब में रहकर उपासना होती है पर श्रीवृंदावन ऐसा है जहाँ पर श्रीवृंदावन की उपासना होती है।
रसिक बैठकर श्रीवृंदावन! श्रीवृंदावन! श्रीवृंदावन! श्रीवृंदावन! श्रीवृंदावन! इस धाम की पूजा करते हैं। इस धाम की परमोपासना करते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज।।
यः अस्माकं मनः मथयति सः कामः, यः कामस्य मनः मथयति सः कृष्णः इति उच्यते। कामस्य पूर्तिः लघुः विषयः यतः इच्छायाः पूर्तिः पुनः इच्छां जनयितुं शक्नोति परन्तु इच्छायाः निवृत्तिः पूर्णतृप्तेः रूपम् अस्ति।
यदा यदा ईश्वरः प्रादुर्भूतः, तदा अनन्तावतारेषु ईश्वरेण नानाशरीराणि गृहीतानि। ईश्वरः एतानि विविधानि शरीराणि धारयित्वा कामनाः पूरितवन्तः परन्तु रासमण्डले यः ईश्वरः प्रादुर्भूतः सः सर्वान् कामनान् समाप्तवान्। मनमथ मनमथ साक्षात्।
भवान् सम्पूर्णं विश्वं भ्रमतु किन्तु वृन्दावनस्य सौन्दर्यं अन्यत्र कुत्रापि न लभ्यते। यत्र धामस्यैव स्वतन्त्रा पूजा भवति। अन्यत्र क्षेत्रस्य पूजा नास्ति, तत्र क्षेत्रस्य पूजा अस्ति।
मुक्ति इच्छन्तः मुक्तिक्षेत्रे उपविश्य पूजयन्ति, भक्ति इच्छन्तः भक्तिक्षेत्रे उपविश्य पूजयन्ति। पूजा सर्वधामेषु भवति, परन्तु श्रीवृन्दावनं तादृशं यत्र श्रीवृन्दावनं पूज्यते।
श्री वृन्दावन विराजमान मोहित ! श्री वृन्दावन ! श्री वृन्दावन ! श्री वृन्दावन ! श्री वृन्दावन ! अस्य धामस्य पूजनं कुर्मः। ते एतत् पदं परमं पूजयन्ति।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
That what completely churns our mind is called Kama and the one who churns the mind of Kama is Shree Krishna. The fulfilment of a desire is a very small thing because the fulfilment of one desire will give rise to another but the total eradication of desires is the Swaroop of complete fulfilment of desire lessness!
Whenever the Lord has incarnated, He has taken different Avatars, ‘Taba taba Prabhu dharey bibidha sareera||’ Taking these different forms the Lord has fulfilled the desires of His devotees but his assuming innumerable forms in the ‘Raasa-Mandala’ has eradicated the desires of so many births altogether! ‘Sakshaat Manmatha Manmatha’||
You travel all around the world but the divine beauty of Shree Dham Vrindavan is unique! Here, the Dham itself is worshipped independently! No other place is worshipped in any area but here the worship is inscribed all over this area!
Those who seek Mukti, sit in the Dham of Mukti and perform austerities, those seeking Bhakti, practice the austerities in the Dham of Bhakti. One can practice different austerities in all the different ‘Dhams’ but Shree Vrindavan Dham is such where the Dham itself is worshipped!
The Rasiak’s sit and chant, ‘Shree Vrindavan! Shree Vrindavan! Shree Vrindavan! Shree Vrindavan!’ and worship this sacred Dham! They perform the supreme devotional service of this Dham!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||