||श्री राधारमणो विजयते||
ऐसा कोई संत नहीं है, राम की महिमा किसी ने गाई, किसी ने नहीं गाई। कृष्ण की महिमा किसी ने गाई, किसी ने नहीं गाई। कोई उन्हें बंसी वाला कहता है, कोई धनुष वाला कहता है, कोई निराकार कहता है, कोई साकार कहता है पर
ऐसा कोई नहीं है जिसने गुरु की महिमा नहीं गाई हो। कोई भी ऐसा नहीं है।
इस दुनिया में जितने भी विकार हैं जैसे मोह हुआ, लोभ हुआ, आसक्ति हुई यह सब विकार संसार में हो जाए तो बंधन है, गुरु में हो जाए तो मुक्ति है। परम मुक्ति है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
Some saints have recited the glories of Shree Rama, some have not. Some have sung the glories of Shree Krishna and some haven’t. Some address Him as ‘Bansiwala’, a few say ‘Dhanurdhaari’, one school of thought says that He is formless while the others say He has a form! But;
You will never come across a saint who hasn’t recited the glories of the Guru! There is no one at all!
All the ills afflicting the world like Moha, Lobha, Aasakti etc, if they drive you deeper into the material world then they become a sort of a bondage or shackles but if they are directed towards your Sadguru then it is Mukti! Allow me to say ‘Param-Mukti’!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
न तादृशः साधुः, केचिद् रामस्य महिमाम् गायन्ति स्म, केचित् न गायन्ति स्म। केचित्कृष्णस्य महिमा गायन्ति स्म, केचित् न गायन्ति स्म। केचिद् वेणुयुक्तं कथयन्ति, केचित् धनुर्युक्तं वदन्ति, केचित् निराकारं वदन्ति, केचित् शारीरिकं वदन्ति, किन्तु…
न कश्चित् गुरुमहिमा न गायति। न कश्चित् तथा ।
अत्र लोके सङ्गः लोभः आसक्तिः इत्यादयः सर्वे दोषाः सन्ति यदि एते सर्वे दुष्टाः लोके भवन्ति तर्हि बन्धः, यदि गुरुः भवति तर्हि मुक्तिः। परममुक्तिः एव ।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥