श्री राधारमणो विजयते
सही बात है व्यक्ति का स्वभाव है कि वो नृत्य तो करेगा ही करेगा। अब ये तुम्हारे हाथ में है कि इधर-उधर की ढोल तासों में जाकर नृत्य किया जाय जो केवल पतन के कारण बनेंगे या हरिनाम संकीर्तन में नृत्य कर लिया जाय जो वो नृत्य ही उत्थान का मार्ग बन सकता है।
जीव का वास्तविक स्वभाव है गाना। अब ये तुम्हारे हाथ में है कि इधर- उधर को रिझाने के लिए लिखे गए गीतों को गाकर गायन के सुख का आस्वादन कर लिया जाय या उसी के माध्यम से श्रीगोविन्द के गुण गाकरके उस परम पद कौ प्राप्त कर लिया जाय।
ये व्यक्ति का मूल स्वभाव है। पशु इन सबसे विहीन है। कला और संगीत भगवान ने मनुष्य को स्वभावतः प्रदान किए हैं।
देखना हमारा वास्तविक स्वभाव है पशु तो देखना भी नहीं जानता वो तो केवल आहार देखता है भय देखता है और कुछ नहीं देख सकता। दृष्टि का विलास तो मनुष्य के पास है। अब ये हमारे हाथ में है कि हम केवल किसी कामिनी कंचन कुर्वी कलेवर कादम्बों को देखते रहे या साक्षात् जाके श्रीराधारमण जी के सौन्दर्य का भी दर्शन किया।
संगीत सुनेंगे तो सही ये वास्तविक स्वभाव है अब ये तुम्हारे हाथ में है कि केवल सुर लहरियों को सुनकर किसी के प्रस्तुतियों में डूबे रहे या श्रीराधारमण जी के स्तुतियों में डूबे रहे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
It is true that it is human nature to dance! Now it is entirely upto you whether you want to dance to the beats of the drums here or there which will ultimately lead to your downfall or you dance in ecstasy during the Harinaam Sankirtana wherein this dance itself will become instrumental in your ascension on the spiritual path!
It is the basic nature of man to sing. Now it is in your hands whether you want to sing songs written by this one or that one to please all and sundry and enjoy or that very medium can be used to sing the glories of the Lord and attain ultimate realisation.
This is the true nature of a human being. The animal is deprived of all this. Art, culture and music has been gifted by the Divine to man as the very intrinsic nature.
Seeing is our basic nature but the animal can’t see excepting it can see the food and danger, nothing else! This luxury is only enjoyed by man. Now it is entirely upto us whether we see only a ‘Kamini kanchan kurvi kalevar kadamb’ or we go to have the in person Darshan of Shree Radha Ramanji’s Divine beauty.
We will hear music because it comes naturally to us, now it is entirely upto you whether you immerse yourself in the different types of music and songs or just be immeresed in the different Stutis of Shree Radha Ramanji!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||