श्री राधारमणो विजयते
जब किसी के हृदय में परमात्मा की जिज्ञासा जगेगी और ये व्यक्ति का मूल स्वभाव है। हम कुछ भी देखते हैं उसके प्रति हमारी जिज्ञासा जगती है बच्चा सबकुछ पकड़ने की कोशिश करता है उसको सद् असद् का भी नहीं पता । वो सांप बिच्छू भी पकड़ लेता है। सबको जानने की जिज्ञासा है उसके भीतर।
ऐसे ही किसी साधु की संगति से अगर अथातो ब्रह्म जिज्ञासा अगर ये जिज्ञासा हृदय में जागृत हो गई कि सत्य क्या है? किसी न किसी के मन में तो आती ही है स्ट्रीम फैसेलिटीज़ और लक्जरीज़ को भुगतने के बाद भी फिर व्यक्ति खोज करता है।
आज हम जिन सुखों की कल्पना करते हैं विदेश में रहने वाले सैकड़ों लोग रोज उन सुखों के सराबोर रहते हैं उसके बाद भी शांति की एक बूँद खोजते रहते हैं। बहुत सारे लोग हैं जो सुख की चरम सीमा पाने के बाद भी ये विषय की मैटेरियल वर्ल्ड की जितनी चीजें हैं इसकी भी एक लिमिट है
दो चार ही हैं जो दुनियाकी बेस्ट गाड़ी हैं दो पाँच करोड़ रुपिया में वो ले सकते हैं, दो चार दस ही लोकेशन है जो दुनिया के most expensive घर हैं बीस पच्चीस करोड़ हुआ तो वहाँ घर बना सकते हैं, दुनिया में दो पाँच ही ऐसी महंगी शर्ट है महंगी outfits है जो आप ले सकते हैं पाँच दस लाख में वो भी खरीद सकते हो।
तो ये सारा खेल तो दस बीस पच्चीस कड़ोर रुपये में एकबार में निपट जाता है इसके बाद क्या?? इसके बाद आदमी सोचता है अब हमें खुशी कहाँ मिलेगी? हमें शांति कहाँ मिलेगी? फिर वो इधर- उधर के ऊहापोह में घूमता है। इधर- उधर की समस्याओं में डोलता है। फिर वो शांति की खोज के लिए निकलता है।
देखा गया है पूरी दुनिया सीखसुख की चरम सीमा तक पाने के बाद फिर अध्यात्म के पथ की ओर अग्रसर होते हैं। दुनिया में सैकड़ों लोग हैं जिन्होनें सुखकी चरम सीमा को भुगतने के बाद अनुभव किया कि भक्ति के क्षेत्र में उतरना आवश्यक है।
देश का सबसे बड़ा धन साधु है। अभी भी आप infrestrcture की बात करो, मैडिकल सांइस की बात करो एजुकेशन की बात करो डेवलपमेंट की बात करो तो भारत कहीं से बीस साल पीछे है कहीं से चालीस साल पीछे है कहीं से पन्द्रह साल पीछे है पर अभी भी भारत का साधु जाता है तो दुनिया पैरों में बैठती है और साधु सिंहासन पर बैठता है।
क्योंकि हमारे पास जो स्पिरिचुअल साइंस है वो किसी के पास नहीं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When the curiosity for the Almighty arises in one’s mind, it is quite a natural and intrinsic human nature. Whenever we see something, the curiosity to know more arises in one’s mind like the child tries to catch everything without knowing the difference between real or unreal. He even catches a snake or a scorpion. He has this burning desire to know everything!
Similarly, by the holy company of a Sadhu, this desire, ‘Athaatto Brahma Jigyasa’ arises to know the truth! It is but natural that inspite of enjoying opulence and all the luxuries one has the desire to explore!
Today, the luxuries we imagine, people in the West are steeped in them all the time, yet are looking for even a drop of peaceful serenity. Many people after enjoying extreme luxuries come to the conclusion that there is a limit to the amenities of the material world!
There are very few who can afford to buy the most expensive cars in the world costing a few crores, there are just a few who can own a dwelling in the most exclusive locations in the world costing billions, you can buy only a few very expensive shirts or outfits, costing maybe a few lakhs.
This entire gamut can be enjoyed once by spending crores on it but what next?? After all this, one starts looking for happiness, elsewhere! Where will I get peace? Then, he is wandering here and there in search of that elusive Shanti! He is besotted by numerous problems and he hankers to get that peaceful serenity.
It has been observed all over the world that after enjoying extreme opulence, the person turns toward spirituality. There are thousands of people who have enjoyed all the luxuries or comforts one can imagine but ultimately get down in the field of Bhakti.
The greatest wealth of our nation is the Sadhu. If you talk about infrastructure or the medical science or education or other development then you find that India is lagging behind to a great extent compared to the developed world but when a Sadhu from India goes anywhere then he is seated on a throne with the world sits at his feet!
This is only because that the spiritual science that we posses is not there with anybody else!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||