एक बात मैं कहूँ किसी ने आपका कुछ किया हो तो उसकी कृतज्ञता ज्ञापन केवल उसके लिए कुछ करना नहीं है। ये बहुत सावधानी की बात है। कुछ करना ही कृतज्ञता ज्ञापन नहीं होता नहीं तो आप उलझ जाएंगे। कई बार फिर आपको अपने सामर्थ्य से परे जाना पड़ेगा और आपका शोषण हो जाएगा।
फिर इसी स्वभाव का दुर्योधन प्रयोग करेगा कर्ण को अपनी तरफ शामिल करने के लिए। कर्ण वहाँ कृतज्ञता के के भावना से खड़ा है ये जानते हुए भी कि यहाँ गड़बड़ हो रही है।
सबसे बड़ा कृतज्ञता ज्ञापन है दूसरे के लिए सतत् उसके सुख की प्रार्थना करते रहना। अगर आपके लिए किसी ने कुछ किया है तो भगवान ऐसी कृपा करो कि इसको मेरी और किसी की जरूरत ही न पड़े। ये करिए।
हम तो पहले ही ये अवसर करते हैं आपने मेरे लिए किया है अच्छा कभी मेरी जरूरत पड़े तो तुरंत बता देना। तो हमने कहीं न कहीं ये प्रार्थना कर दी कि कभी इसको मेरी भी जरूरत जल्दी पड़े। जिससे हमारा हिसाब क्लियर हो जाय। और फिर ये हिसाब कभी खत्म ही नहीं हो पाता।
आपके प्रति कभी किसी ने अच्छा किया है तो एक बार जाकर श्रीभगवान को बिल्वपत्र चढ़ाकर प्रार्थना कर दीजिए भगवान ! ऐसी कृपा कीजिएगा इसने मेरी बड़ी सहायता की है इसको कभी मेरी सहायता की जरूरत ही न पड़े। इससे बड़ी कृतज्ञता ज्ञापन नहीं हो सकती।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
Should I tell you something? If someone has done something for you then merely expressing your gratitude is not enough! Please understand this very carefully! Doing something in return does not suffice to show that you are grateful, or else you will get entangled! Many a times you may have to go beyond your means and this will result in your exploitation.
This very ploy, Duryodhana used to take Karna in his side. Karna is siding with him out of sheer gratitude knowing fully well that things were not right there.
The greatest expression of gratitude is to always pray for the other person’s welfare. If someone has done something for you then pray that O’ Lord! Please bless him/her that no need should ever arise in their life that they need me or anyone else for help. ‘DO THIS’!
We start with this statement that since you have done this for me, if at all you need my help, don’t hesitate to ask me. This goes to prove that somewhere within, quietly you have prayed that may he/she need my help, so that our account can be squared up. Somehow, this goes on and on without ever getting settled.
If someone has done some good for you then at least go to the Lord and offer a ‘Bilwa-Patra’ with devotion and pray, O’ Lord! Please bless this person for he/she has helped me going out of the way but he/she should never need my help!’ There cannot be a more ideal or a proper expression of gratitude!
|| Param Aaradhya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (३१-०५-२०२३)
एकं वदामि, यदि कश्चन भवतः कृते किमपि कृतवान् तर्हि तस्य कृतज्ञता केवलं तस्य कृते किमपि कर्तुं न भवति। एतत् महतीं सावधानतायाः विषयः अस्ति। केवलं किमपि करणं कृतज्ञतायाः इशारा न भवति अन्यथा भवन्तः भ्रमिताः भविष्यन्ति । बहुवारं पुनः भवतः सामर्थ्यात् परं गन्तव्यं भविष्यति, भवतः शोषणं भविष्यति ।
तदा दुर्योधनः एतदेव स्वभावं प्रयुज्य कर्णं स्वपक्षे जित्वा । अत्र अव्यवस्था प्रचलति इति ज्ञात्वा कर्णः कृतज्ञतायाः भावेन तिष्ठति।
परस्य सुखाय निरन्तरं प्रार्थनां कुर्वन् एव स्थातुं सर्वाधिकं कृतज्ञताज्ञापनम् अस्ति। यदि कश्चन भवतः कृते किमपि कृतवान् तर्हि ईश्वरः भवन्तं एतादृशं आशीर्वादं ददातु यत् तस्य मम अन्यस्य च आवश्यकता नास्ति। एवं कुरु
वयं पूर्वमेव एतत् अवसरं कुर्मः, भवता मम कृते उत्तमं कृतम्, यदि भवतः कदापि मम आवश्यकता अस्ति तर्हि तत्क्षणमेव मां वदतु। अतः कुत्रचित् वयं प्रार्थयामः यत् कदाचित् तस्य मम शीघ्रमेव आवश्यकता भवेत्। यथा अस्माकं लेखाः स्वच्छाः भवितुम् अर्हन्ति। तदा च एषा गणना कदापि न समाप्तं भवति।
यदि कश्चित् भवतः प्रति भद्रं कृतवान् तर्हि एकवारं गत्वा भगवते बिल्वपत्रं अर्पयन्तु, ईश्वरं च प्रार्थयन्तु! कृपया एतादृशं अनुग्रहं कुरुत यत् सः मम बहु साहाय्यं कृतवान्, तस्य मम साहाय्यस्य कदापि आवश्यकता नास्ति। अस्मात् महत्तरं कृतज्ञता न भवितुमर्हति।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।