||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Katha always speaks about the Leelas or the Divine Play which are forever relevant. In all the Yugas or time spans the Leelas manifest. The Lord promises in the Shreemadbhagwat -‘Paadau paddam na chalitas tava paad moolat | I don’t step out of Vrindavan at all.’
How can we prove this point when Shree Thakurji goes away to Dwarika? But, Shree Krishna of Shree Dham Vrindavan doesn’t leave at all! Even to this day, He performs ‘Nitya-Leela’ in the form of Shree Radha Ramanji! It is our bad luck that we aren’t able to understand it! Arrey! During Shree Krishna’s time, Kansa could not understand so it is no surprise that in today’s time we are not able understand the Divine Play of Shree Radha Raman Lalju, it is just our bad luck!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
Hindi
कथा नित्य वर्तमान लीलाओं का प्रसारण है। युग-युगान्तरों में विभिन्न लीला का प्राकट्य होता है। भगवान ने श्रीमदभागवत में स्वयं वचन दिया है-
“पादौ पदम् न चलितस् तव पाद मूलात्।
मैं वृन्दावन से बाहर एक कदम नहीं रखता।”
अब ये बात कैसे प्रमाणित होगी ठाकुरजी तो द्वारिका चले गए? वो इसी भाव से प्रमाणित होगी कि श्रीवृन्दावन के श्रीकृष्ण तो कहीं भी नहीं जाते। अभी भी तो श्रीराधारमण जी के रूप में विद्यमान होकर रोज लीला कर रहे हैं।
हमारा दुर्भाग्य है कि हम उसे नहीं समझ पा रहे हैं। अरे! जब श्रीकृष्ण स्वयं हैं तब कंस नहीं समझ पा रहा है तो अभी भी तो श्रीराधारमणजी नित्य हैं जो न समझ पाए ये तो उसी का दुर्भाग्य है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।
Sanskrit
कथा वर्तमानलीलानां दैनिकप्रसारणम् अस्ति। विभिन्नेषु युगेषु विविधाः लीलाः दृश्यन्ते । ईश्वरः स्वयम् श्रीमद्भागवतं प्रतिज्ञां कृतवान्-
“पदौ पदं न चलितस्तव पद मूलत ।
अहं वृन्दावनात् कदापि बहिः गच्छामि” इति ।
अधुना ठाकुरजी द्वारकां गतः इति कथं सिद्धं भविष्यति ? श्रीवृन्दावनस्य श्रीकृष्णः कुत्रापि न गच्छति इति समानार्थे सिद्धं भविष्यति। इदानीमपि श्री राधारमण जी रूपेण उपस्थितः सन् प्रतिदिनं लीला करोति।
अस्माकं दुर्भाग्यं यत् वयं तत् अवगन्तुं न शक्नुमः। ओहो ! यदा श्रीकृष्णः स्वयं तदा कंसः अवगन्तुं न समर्थः भवति, तदा इदानीमपि श्री राधरमञ्जी सर्वदा वर्तते, तस्य दुर्भाग्यं यत् अवगन्तुं न समर्थः भवति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।