||Shree Radharamanno Vijayatey||
He never tries to project himself as the Master. He becomes the son, a friend, beloved, the brother or companion. He never imposes himself to be the Master. He has always been very ingenuous. Krishna is not the Master, He is the lover, the Supreme Personality of Divine Love. His nature is very simple.
Shree Raghunath walked away to the forest, Shree Mahaprabhuji walked bare footed on the path of Divine Love, when Shree Krishna sets His foot on the holy land of Shree Dham Vrindavan;
‘Trunna charaanugam Shree niketanam’||
Krishna, you are not aware that you don’t walk bare footed here, when you take the cows for grazing, walking bare footed behind them, our minds precede you and sweep the path for you!
Who says that Krishna walked bare footed in Vrindavan? Gurudev says, Thakurji does not walk on this land of Vrindavan, instead He walks on the hearts of the Gopis. It is their heart land!
He became a friend, a Bhakta, a brother, but He had such a glow in His eyes that when He looked at some one with benevolent eyes, that person instantly becomes His Dasa or servitor!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
Hindi
उसने कभी ये नहीं दिखाया कि वो स्वामी है। वो पुत्र बना वो मित्र बना वो प्रिय बना वो भाई बना वो सखा बना। स्वामी नहीं बना। वो तो सहज रहा। कृष्ण स्वामी नहीं है कृष्ण प्रेमी हैं अनन्त प्रेमी है। वो सहज रहा।
जंगलों में चल पड़े रघुनाथ, नंगे चरण पथ पर चल पड़े महाप्रभु, वृन्दावन में श्रीकृष्ण जब अपने चरण धरते हैं तृण चरानुगम् श्रीनिकेतनम्।। कृष्ण तुमको मालूम नहीं है तुम नंगे चरण चरण नहीं धरते हो जब तुम गौचारण के लिए नंगे चरण जाते हो उससे पहले हमारा मन उस रस्ते को कितना बुहार देता है।
किसने कहा कृष्ण नंगे चरण चलते हैं वृन्दावन पर ? गुरुदेव कहते हैं- नंगे चरण वृन्दावन की धरती पर नहीं चलते हैं गोपी के हृदय पर चलते हैं। वो हृदय है।
वो मित्र बना वो भक्त बना वो भाई बना पर हाँ उसकी आँखों में ऐसा जोर था कि जिसपर न्यौछावर होकर तुम उसके दास बन गए।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।
Sanskrit
सः कदापि स्वामित्वं न दर्शितवान् । सः पुत्रः अभवत्, सः मित्रः अभवत्, सः कान्तः अभवत्, सः भ्राता अभवत्, सः मित्रम् अभवत्। न स्वामी बभूव। सः सहजः आसीत् । कृष्णः न स्वामी, सः कृष्णस्य कान्तः, सनातनः कान्तः। सः सहजः आसीत् ।
रघुनाथः वनेषु चरति स्म, महाप्रभुः नग्नपदं मार्गे चरति स्म, यदा श्रीकृष्णः वृन्दावने तस्य चरणं स्पृशति स्म, तृणचरणगमं श्रीनिकेतनम्। कृष्ण, त्वं न जानासि यत् त्वं नग्नपादैः न गच्छसि, यदा त्वं नग्नपादाः गच्छसि गोचरितुं, ततः पूर्वं, अस्माकं मनः कियत् तत् मार्गं कष्टं करोति।
वृन्दावने कृष्णः नग्नपदं गच्छति इति केन उक्तम्? गुरुदेव कहते – नग्न पाद वृन्दावन के माटी पर चलते हैं, गोपीओं के हृदयों पर चलते हैं। तत् हृदयम् ।
सः मित्रम् अभवत्, सः भक्तः अभवत्, सः भ्राता अभवत्, परन्तु आम्, तस्य नेत्रयोः एतादृशं बलम् आसीत् यत् तस्मै समर्पणेन त्वं तस्य दासः अभवः।
परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।