मैं इक निवेदन करूँ, difficulties, sorrow दुख ये सब natural आपके पास आएगा, पर happiness को आपको choose करना पड़ेगा। आप चुपचाप बैठे रहे तो दुख अपने आप घेर लेगा। पर कोशिश करनी पड़ेगी हँसने के लिए। एक ऑप्शन है हैप्पी होने का जो आपको चूज करना पड़ेगा।
हम वेट करते हैं कि हम कब सुखी होंगे? कब पीसफुल होंगे? हम कब आनंदमय होंगे? वी आर जस्ट वेटिंग की कोई आएगा। चलकर तो केवल दुखाता है, खुशी को तो हमें tap करना पड़ता है। उसका चुनाव करना पड़ता है। उसको प्राप्त करना पड़ता है।
किसी के सुख में सुखी होना जब संभावित हो जाए, तब आप कहना कि हाँ अब हम कुछ धार्मिक हैं। मंदिर तो रावण भी बहुत ज्यादा है। शिव जी की ऐसी सेवा करता है कि छोटे मोटे आदमी की औकात नहीं कि वो कर ले।
दुर्योधन उसी को कहते हैं जो दूसरे के सुख में सुखी नहीं है। पूरे महाभारत पर विचार कीजिए दुर्योधन महलों में रहते हुए भी महलों में नहीं है और युधिष्ठिर जंगलों में सोते हुए भी शांत हैं क्योंकि उनके मन में प्रतिस्पर्धा नहीं है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (०८-०६-२०२३)
अहं अनुरोधं करोमि, कष्टानि, दुःखानि, एतानि सर्वाणि स्वाभाविकतया भवतः समीपं आगमिष्यन्ति, परन्तु भवतः सुखं चयनं कर्तव्यं भविष्यति। यदि त्वं शान्ततया उपविशसि तर्हि शोकः स्वयमेव त्वां परितः भविष्यति। परन्तु भवता हसितुं प्रयतितव्यम्। सुखी भवितुं विकल्पः अस्ति यस्य चयनं भवद्भिः कर्तव्यम्।
प्रतीक्षामहे कदा सुखिनः भविष्यामः ? कदा शान्तिः भविष्यसि ? कदा वयं सुखिनः भविष्यामः ? वयं केवलं कस्यचित् आगमनस्य प्रतीक्षां कुर्मः। गमनम् केवलं दुःखं ददाति, अस्माभिः सुखं टैपं कर्तव्यम्। तस्य चयनं कर्तव्यम् अस्ति। तस्य ग्रहणं कर्तव्यम् अस्ति।
यदा कस्यचित् सुखे सुखी भवितुं शक्यते तदा भवन्तः वदन्ति यत् आम्, अधुना वयं किञ्चित् धार्मिकाः स्मः। अत्र बहवः मन्दिराणि, रावणम् अपि सन्ति । सः शिवस्य सेवां करोति यथा लघु स्थूलस्य अपि तस्य सामर्थ्यं न भवति।
परसुखं न सुखी यः स दुर्योधन उच्यते । समग्रं महाभारतं विचार्य दुर्योधनः प्रासादेषु निवसन् अपि प्रासादेषु नास्ति तथा च युधिष्ठिरः वनेषु निद्रां कुर्वन् अपि शान्तः अस्ति यतः तस्य मनसि स्पर्धा नास्ति।
.. परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
Can I make a submission; difficulties, sorrow, unhappiness will come to you naturally but you will have to choose happiness. If you are sitting quietly, sorrow will come and surround you, whereas you will have to make an effort to laugh. Happiness is an option which you have to select!
We wait that when will we be happy? When shall we become peaceful? When will we experience Anand? We are just waiting and hoping that it will come. Sorrow comes on its own but we need to tap happiness. We need to choose it. We have to strive to get it.
When you genuinely become happy in someone else’s happiness, then you can say that you have entered the domain of Dharma. Even ‘Ravan’ used to visit many temples. He used to worship and serve Lord Shiva in a manner which is impossible for any ordinary person to emulate.
Duryodhana is one who cannot be happy in others happiness. Just study and think on the Mahabharat that Duryodhana in spite of living in palaces is unable to enjoy them whereas, ‘Yudhishthir’ even though living in jungles can sleep peacefully only because there is no feeling of competition in his mind!
|| Param Aaradhya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||