जीवन का प्रत्येक कर्म अच्छा है या बुरा है आपने जो किया वो अच्छा है या बुरा है इसकी परिभाषा मात्र समय के अनुरूप ही की जा सकती है। मानसिकता के अनुरूप ही की जा सकती है। क्रिया कुछ नहीं होती क्रिया के पीछे का मोटिव अनुकूल है या नहीं।
धर्म है कि किसी भी स्त्री को कुदृष्टि से देखना गलत है। अधर्म है किसी के भी केश को कोई पकड़ ले उसका पतन हो जाता है। रावण ने केश पकड़े थे, चाणक्य के केश पकड़े गए थे और राज्य समाप्त हो गया था। केश ऊर्जा का बहुत बड़ा केन्द्र होता है इसलिए माता और ब्राह्मण अपनी शिखा को ग्रंथित रखते है। बाँधे रखते है। जिससे ऊर्जा का विसर्जन न हो।
किसी के केश को पकड़ो ये अमर्यादा है अशास्त्रीयता है किसी के भी द्वारा। पर वहीं अगर कोई महिला कोई रसोई में अगर कार्य कर रही हो और भूल से उसके आँचल के ऊपर कोई जलती हुई तीली गिर जाय और आँचल में आग लग जाय तो धर्म की परिभाषा बदल जाती है।
बच्चा हो पिता हो पति हो अरे कोई वैरागी सन्यासी हो। उसका भी धर्म ये कहता है तुरन्त केश को पकड़ कर उसको बाहर निकाले और उसके आँचल को पकड़ कर उसकी नीवी से उसको मुक्त करे। निर्वस्त्र करना घोर अधर्म है। द्रौपदी को किया तो पूरा कुरुवंश समाप्त हो गया। पर
अगर किसी नीवी के ऊपर आग लग गयी हो तो शास्त्र कहता है ब्रह्मचारी ही क्यों न खड़ा हो सन्यासी महात्मा निवृत्ति परायण क्यों न खड़ा हो पर वही अपने हाथ से उसकी नीवी को खींच करके उसे मुक्त करके उसके प्राणों की रक्षा करता है तो स्वयं भगवान उसके ऊपर अनुग्रह करने के लिए पधारते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
Any Karma performed by you in life, whether good or bad, it can only be defined according to the time. It can be done based on the mental make-up at that point in time. The action is not important but whether the motive behind the action is favourable or not?
The Dharma says that to see any woman with a mala-fide intention is wrong. If someone pulls someone’s hair, it leads to the puller’s downfall. ‘Ravana’ had held the hair, Chanakya’s hair was pulled resulting in the destruction of the kingdom. The tresses are the centre of profound energy, that is the reason why the women and the Brahmins keep their hair tied in order to prevent the dissipation of energy.
To pull someone’s hair is undignified and against the tenets of the scriptures. But in case a lady is cooking in the kitchen and a burning splinter falls on her garment then the entire handling and behaviour changes, thereby the definition of Dharma at that moment is different.
Whether it is a child, father or husband or a renunciate Sannyasin. The Dharma at that moment commands that even if it is necessary to save her life, pull her away by holding her hair and just pull away the burning Saree. But to unclothe a lady is the greatest ‘Adharma’. When ‘Draupadi’ was meted out this treatment, the entire ‘Kuru’ Dynasty was destroyed. But,
If a saree has caught fire, then the Scriptures say that even if you are a ‘Bramhachari’ or a renunciate Sannyasin or Mahatma, go ahead and pull off the burning saree from the knot holding it in order to loosen it so that the burning garment can fall off and her life can be saved. The Lord himself comes down to shower His blessings upon him/her.
|| Param Aaradhya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (०९-०६-२०२३)
जीवनस्य प्रत्येकं कर्म शुभं दुष्टं वा, भवता यत् कृतं तत् शुभं वा दुष्टं वा, तत् कालानुसारमेव परिभाषितुं शक्यते। मनसानुसारं कर्तुं शक्यते। क्रियायाः पृष्ठतः प्रेरणा अनुकूलः अस्ति वा न वा इति कर्मणः महत्त्वं नास्ति।
दुर्नेत्रेण कस्यापि स्त्रियाः दृष्टिः दोषः इति धर्मः । अधर्मम्, यदि कश्चित् कस्यचित् केशान् गृह्णाति तर्हि सः पतति। रावणः चाणक्यस्य केशान् गृहीतवान् राज्यं च समाप्तम् आसीत्। केशाः ऊर्जायाः महत् केन्द्रम् अस्ति, अतः एव मातरः ब्राह्मणाः च स्वकेशान् बद्धान् धारयन्ति। भवन्तं बद्धं करोति। यथा ऊर्जाविसर्जनं न भवति।
कस्यचित् केशग्रहणं अशोभनं, केनापि अशास्त्रीयम्। परन्तु अपरपक्षे यदि स्त्रियाः पाकशालायां कार्यं कुर्वती अस्ति तथा च भूलवशं तस्याः अङ्के ज्वलितः माचिसः पतति, अङ्के अग्निः गृह्णाति तर्हि धर्मस्य परिभाषा परिवर्तते।
बालः पिता वा पतिः एकान्तवासी वा संन्यासी वा। तस्य धर्मः अपि वदति यत् सद्यः केशान् गृहीत्वा बहिः आकृष्य तस्य लपलं धारयित्वा तस्य निवितः मुक्तं कुर्वन्तु। परिधानं स्थूलं अधर्मम्। यदा द्रौपदी हते तदा समस्तं कुरुवंशस्य समाप्तिम् अभवत् । किन्तु
यदि नीवीयां अग्निः अभवत् तर्हि ब्रह्मचारी अपि स्थितः स्यात्, संन्यासी एकान्तवासी न स्यात्, किन्तु सः एव स्वनीवीं हस्तेन आकृष्य मुक्त्वा प्राणान् रक्षति, तदा ईश्वरः एव तस्य प्राणान् रक्षति। उपरि अनुग्रहं प्रति आगच्छन्तु।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।