गोपी का वास्तविक अनुकरण गोपीगीत ही है।
कभी-कभी किसी का अनुकरण आचरण से करते हैं, कभी-कभी किसी का अनुकरण वसन (वस्त्र) से करते हैं और कई बार किसी का अनुकरण वचन से करते हैं। यह अनुकरण करने के तरीके हैं।
कई बार किसी-किसी का अनुकरण वसन से होता है। जैसे कोई लीला में कृष्ण बने तो वसन से ही तो कृष्ण बनेगा। मोर मुकुट पहन लिया, बंसी लगा लिया।
किसी-किसी का अनुकरण आचरण से होता है और अनुकरणों में श्रेष्ठ अनुकरण आचरण का ही होता है। आप किसी साधु का वेष धारण करो वो अलग चीज है। कोई कैसा दुपट्टा डाले, कोई कैसा दुपट्टा ले, अलग-अलग बात है।
संत सा होने में और संत का होने में बहुत बड़ा फर्क होता है। संत सा तो कोई भी हो सकता है, संत का तो कोई कोई ही हो सकता है। महत् जन का कोई कोई हो सकता है। कपड़ा डालकर कोई भी साधु हो सकता है। वसन का साधु तो रावण भी बना।
रावण वसन का साधु है तो जटायु आचरण के साधु हैं। जो दूसरे की पत्नी को बचाने के लिए अपने प्राणों को छोड़ देते हैं।
अनुकरणों में तो आचरण का ही अनुकरण सर्वश्रेष्ठ है।
कई बार हम जिसका अनुकरण कर रहे हैं उसका आचरण करना असम्भव हो जाता है। क्या कृष्ण का अनुकरण कर सकते हो? क्या गिरिराज पर्वत उठाओगे? पचास किलो का पत्थर ही उठा कर दिखा दे पहले, सौ फन के कालिया पर नाचोगे? कृष्ण का अनुकरण सम्भव नहीं है।
श्रीकृष्ण का वसन से भी अनुकरण नहीं होता, श्रीकृष्ण का आचरण भी अनुकरण नहीं होता पर श्रीकृष्ण का वचन से अनुकरण होता है।
गीता उनका वचन है, भागवत उनका वचन है, हरिनाम उनका वचन है। उस वचन का अनुकरण होता है।
तदवत् रूप से अगर गोपी का अनुकरण करना है तो वसन से गोपी का अनुकरण बड़ा सस्ता सौदा है। आचरण से गोपी का अनुकरण बहुत कठिन है, असंभव है। अगर गोपी का अनुकरण करना है तो वह सहज वचन से हो सकता है।
तुम इसी मायने में गोपी हो जाओ, रोज आकर राधारमणजी को गोपीगीत सुना जाओ। इतना पर्याप्त है। बिल्कुल अपने मनोभाव से सहज। तुम और ठाकुर जी। इसके ऊपर किसी लीपापोती की जरूरत नहीं है।
यही अनुकरण जिस दिन कृष्ण कर्ण में पहुँच जाय तो बात बन सकती है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The actual act of following the Gopi is only the ‘Gopi Geet’!
Some times you try to imitate by your actions or by dressing up like the other person or it could also be by trying to copy the way he/she speaks. These are the different ways of imitation or copying.
At times you try and copy the way that person dresses. Like, in a ‘Krishna-Leela’, if someone is doing the role of Krishna, he will have to dress up and do the makeup like him. He will wear a headgear with a peacock feather and hold a flute in his hand.
Some times you try and behave like the other person and in fact the most appropriate imitation will be depicted by the behaviour. If you dress up like a Sadhu, it is a different matter. You might take different types of ‘Dupattas’ according to the makeup, what is the difference?
To be like a saint and to become a saint are two separate things. Anybody can try to act like a saint but actual saints are very rare these days! Only very few can attain greatness! Dressing up like a Sadhu is very easy. Even Ravan had put on the makeup of a sadhu!
If Ravan is an artificial Sadhu, then ‘Jatayu’ is an actual sadhu, who sacrifices his life to save a woman in distress!
Therefore, when you talk of imitating then to imbibe the person’s behaviour is the best!
Many a times, it becomes impossible to behave like the person whom you are trying to impersonate. Can you inculcate the nature of Krishna? Will you be able to lift the ‘Giriraj’? First try to lift a fifty kilos rock and show! Can you dance on the hundred hooded ‘Kaliya’? It is impossible to do what He did!
You cannot even dress up like Krishna, you cannot behave like Him but yes, you can follow the way He speaks!
Gita is His spoken words! Shrimad Bhagwat is His language, Hari Naam represents Him! You can follow His words!
Similarly, if you seriously want to become a Gopi then to dress up like her is very cheap! To behave or inculcate her nature is next to impossible! If at all you are serious to emulate her then you can follow her words!
I tell you an easy way out to become a Gopi, everyday come to Shree Radha ‘Ramanji’ and recite the Gopi Geet! Just this much is enough! Just do it with sincerity and total devotion, in a very natural manner! Just you and Shree Thakurji! You don’t need to dress up or do any makeup!
When your words reach Shri Krishna’s ears, your work is done!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
gopi गीतं गोपिस्य वास्तविकं अनुकरणम् अस्ति।
कदाचित् आचरणेन कस्यचित् अनुकरणं कुर्मः, कदाचित् वस्त्रेण कस्यचित् अनुकरणं कुर्मः, कदाचित् वचनेन कस्यचित् अनुकरणं कुर्मः। एते अनुकरणस्य उपायाः सन्ति।
बहुवारं कश्चित् वसनेन अनुकरणं भवति। यथा लीलायां यदि कश्चित् कृष्णः भवति तर्हि वसनेनैव कृष्णः भविष्यति। मयूरमुकुटं धारयति स्म, वेणुं संलग्नं करोति स्म।
कस्यचित् अनुकरणं आचरणेन भवति अनुकरणेषु च उत्तमम् अनुकरणं आचरणमात्रस्य भवति। त्वं भिक्षुवेषं धारयसि, तत् भिन्नं वस्तु। कीदृशं दुपट्टं कश्चित् धारयेत्, कीदृशं ओढनीं कश्चित् गृह्णीयात् इति भिन्नः विषयः।
साधुसदृशत्वे साधुत्वे च महत् अन्तरम् अस्ति। कोऽपि साधुसदृशः भवितुम् अर्हति, केवलं कोऽपि साधवः भवितुम् अर्हति। महत् महत्त्वपूर्णं कोऽपि भवितुम् अर्हति । वस्त्रधारणेन कोऽपि साधुः भवितुम् अर्हति । रावणोऽपि वसनस्य ऋषिः अभवत् ।
रावणः वसनस्य ऋषिः, ततः जटायुः आचारमुनिः। परपत्न्याः त्राणार्थं ये प्राणान् त्यजन्ति।
अनुकरणेषु व्यवहारानुकरणं श्रेष्ठम् ।
कदाचित् वयं यत् अनुसृताः स्मः तस्य अभ्यासः असम्भवः भवति । कृष्णस्य अनुकरणं कर्तुं शक्नुथ वा ? गिरिराज पर्वतम् उत्थापयिष्यसि वा ? प्रथमं पञ्चाशत् किलोमात्रं भारयुक्तं पाषाणम् उत्थाप्य मां दर्शयतु, किं त्वं शतपादकलियायां नृत्यसि? कृष्णस्य अनुसरणं न सम्भवति।
श्रीकृष्णः मुद्रायाः अपि अनुकरणं न भवति, श्रीकृष्णस्य आचरणस्य अपि अनुकरणं न भवति किन्तु श्रीकृष्णस्य वचनेन अनुकरणं भवति।
गीता तस्य वचः, भागवतः तस्य वचः, हरिनाम तस्य वचः। सा प्रतिज्ञा अनुसृता भवति।
वस्तुतः यदि भवान् गोपीं अनुसरणं कर्तुम् इच्छति तर्हि वासनतः गोपीं अनुसरणं अतीव सस्तो सौदाः अस्ति। व्यवहारे गोपीनुकरणं सुदुष्करं, असम्भवम्। यदि गोपी अनुकरणं कर्तव्यं भवति तर्हि सरलशब्दानां माध्यमेन कर्तुं शक्यते।
त्वं अस्मिन् अर्थे गोपी भव, नित्यम् आगत्य राधारमञ्जी को गोपीगीत पाठ कर। तावत् पर्याप्तम्। भवतः मनोवृत्त्या सह सर्वथा सहजः। त्वं च ठाकुर जी। तस्य उपरि कस्यापि प्लास्टरस्य आवश्यकता नास्ति।
अस्मिन् अनुकरणेन कृष्णः यस्मिन् दिने कर्णं प्राप्नोति, तस्मिन् दिने विषयाः समाधानं कर्तुं शक्यन्ते।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।